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________________ श्रीकल्प ॥४२॥ टीका छाया-ततः खलु त्रिषष्टिरपीन्द्राः निजनिजपरिवारपरिवृताः तत्र स्वस्वासने स्थिताः। ततः खलु सर्वे र देवाश्च देव्यश्च एकतो मिलित्वा स्वकस्वककार्यमवृत्ताः सर्वद्धर्या सर्वधुत्या सर्वबलेन सर्वसमुदयेन सर्वादरेण सर्वविभूत्या सर्वसम्भ्रमेण सर्वाऽऽरोहैः सर्व-पुष्प-गन्ध-माल्या-लङ्कार-विभूषया सर्व-दिव्य-त्रुटित निनादेन कल्पमहत्या ऋदया महता हृदयोल्लासेन महता रवेण महान्तं तीर्थकरजन्माभिषेकं कर्तुम् इन्द्रस्य आज्ञामभि मञ्जरी काङ्क्षन्ति । यस्मिन् समये च खलु 'भगवतस्तीर्थकरस्य जन्माभिषेको भविष्यती'-ति ज्ञातं, तस्मिन् समये च खलु देवगणः तृषितो जलं पातुमिव, जन्मदीन इष्टसिद्धिं लब्धुमिव, रोगी आरोग्यं प्राप्तुमित्र, निराधार आधार ___ मूल का अर्थ- 'तए थे' इत्यादि। तत्पश्चात् तिरसठ इन्द्र भी अपने-अपने परिवार के साथ, अपने-अपने आसन पर स्थित हुए। उस समय सभी देव और सभी देविया, एक साथ मिल कर अपने-अपने काम में जुट गये और सम्पूर्ण ऋदिसे, सम्पूर्ण युति से, सम्पूर्ण बल से, सम्पूर्ण समुदय से, सम्पूर्ण आदर से, सम्पूर्ण भगवज्जविभूति से, सम्पूर्ण संभ्रम से, सम्पूर्ण समारोह से, पुष्प, गंध, माला, अलंकार एवं विभूषा के साथ, न्मोत्सव समस्त दिव्य वाद्यों की धनि के साथ, बड़े ठाठ से, बड़े हृदयोल्लास से और महान् शन्दोंसे एक महान् कर्तुकामा: तीर्थकर का जन्माभिषेक करने के लिए इन्द्र की आज्ञा की अभिलाषा-प्रतीक्षा करने लगे। नां देवानां मनोभावजिस समय देवगण ने जाना कि भगवान् तीर्थकर का जन्माभिषेक होगा, उस समय जैसे प्यासा वर्णनम्. जल पीने को, जन्म का दरिद्र इष्टसिद्धि पाने को, रोगी आरोग्य प्राप्त करने को, निराधार आधार पाने भूजन। मय-'तपण' त्यारित्यारपछी थानाद्रिो पातपाताना मसाथै पातपाताना मासन पर બેસી ગયાં. તે સમયે, સર્વ દેવ-દેવીએ એકીસાથે મળીને પિતા-પિતાના કામમાં પરોવાઈ ગયાં. સંપૂર્ણ રિદ્ધિ, આ યુતિ, બળ, સમુદય, આદર, વિભૂતિ, ઐશ્વર્ય, સક્ષમ અને સમાહથી અને પુષ્પ, ગંધ, માળા, અલંકાર અને હદયના ઉ૯લાસથી અને મહાન શબ્દોથી એક મહાન તીર્થકરના જન્માભિષેક કરવા માટે તૈયાર રહીને, ઈદ્રની ॥४२॥ આજ્ઞાની રાહ જોતાં ઉભા હતાં. - ઉપરોકત તૈયારી પૂરી થતાં સર્વ દેવો, ભગવાનનું મુખારવિંદ જેવા તલપાપડ થઈ રહ્યાં હતાં. જેમ - તરસ્યા પાણીની પ્રતીક્ષા કરતા ઉભા હોય છે, જેમ દરિદ્રી ઈષ્ટવસ્તુ મેળવવાની લાલચે વાટ જોઈ રહ્યો હોય છે, w.jainelibrary.org JainEducaticalnationanाता
SR No.600024
Book TitleKalpasutram Part_2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1959
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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