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________________ श्रीकल्प कल्प. सूत्रे मञ्जरी ॥४७४॥ टीका-कोल्लागसंनिवेसे' इत्यादि। कोल्लागसन्निवेशे कोल्लाक नामके ग्रामे, धम्मिलविस्थ धम्मिलाख्यब्राह्मणस्य भदिलाभार्यायां जाता उत्पन्नः सुधर्मस्वामी चतुर्दशविद्यापारगः वेदचतुष्टयं, ऋग्यजुःसामाथवरूपशिक्षा-कल्प-व्याकरण-निरुक्त-स्यौतिष-छन्दोरूप-वेदाङ्गपटक-मीमांसा-न्याय-धर्मशास्त्रपुराणानि चेति चतुर्दशविद्यापारङ्गतः, पञ्चाशद्वर्षान्ते प्रवनितः दीक्षां गृहीतवान् । ततःत्रिंशद् वर्षाणि-यावत् श्रीवर्धमानस्वामिनः अन्तिके-समीपे न्युष्य-निवासं कृत्वा भगवतः श्रीवीरस्वामिनो, निर्वाणानन्तरं मोक्षमाप्त्यनन्तरं द्वादशवर्षाणि टीका छमस्थपर्यायं पालयित्वा, जन्मतः उत्पत्तिकालात द्वानवतिवर्षान्ते गौतमस्वामिनिर्वाणानन्तरं केवलज्ञानं प्राप्य, अष्टवर्षाणि केवलिपर्याये स्थित्वा एकशनवर्षाणि सर्वायुष्कं सकलमायुः पालयित्वा श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य महावीर के निर्वाण के बाद वीस वर्ष बीत जाने पर जम्बूस्वामी को अपने पाट पर स्थापित करके मोक्ष गयेसू०११९॥ टीका का अर्थ-कोल्लाक नामक ग्राम में, धम्मिल्ल नामक ब्राह्मण था। उसकी पत्नी भदिला थी। सुधर्मास्वामी उसी के उदर से उत्पन्न हुए। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद में शिक्षा, कल्प, मुधर्मस्वामि व्याकरण, निरुक्त, ज्यौतिष और छन्द-इन छह वेदांगों में तथा मीमांसा, न्याय, धर्मशास्त्र और पुराण इन परिचय सब चौदह विधाओं में पारंगत थे। पचासवें वर्ष के अन्त में उन्होंने दीक्षा अंगीकार को। उसके बाद वर्णनम् । तीस वर्ष तक श्री वर्धमानस्वामी के समीप निवास करके, भगवान वीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात सू०११९॥ बारह वर्ष तक छमस्थ-पर्याय में रह कर, जन्म से बानवे (९२) वर्ष के अन्त में, गौतमस्वामी के मोक्ष नाने के बाद केवलज्ञान प्राप्त करके, आठ वर्ष तक केवली-पर्याय में स्थिर रह कर, एकसौ वर्ष की વર્ષનું આયુષ્ય પૂરું કરી તેઓ મોક્ષ પધાર્યા, તે ભગવાન મહાવીરના નિર્વાણુ બાદ વીશ વર્ષ પૂરા થયે મેક્ષ ગયા હતા. મેક્ષ પધાર્યા પહેલાં તેઓએ જંબુસ્વામીને પિતાની પાટે સ્થાપિત કર્યા હતા. (સૂ૦ ૧૧૯) ટીકાને અર્થ–કલાક નામના સંનિવેશમાં સ્મિલ્લ નામને એક બ્રાહ્મણ રહેતા હતા. તેની પત્નીનું નામ ભલિા હતું. સુધમાં સ્વામી તેને પેટે જન્મ પામ્યા હતા. તેઓ વેદ, સામવેદ, યજુર્વેદ અને અર્થવવેદમાં ॥४७४॥ નિપુણ હતા. શિક્ષા-ક૯પ-વ્યાકરણ-નિરૂક્ત-જતિષ અને છંદ એવા વેદના છએ અંગમાં પારંગત હતા. મીમાંસા ન્યાય ધર્મશાસ્ત્ર અને પુરાણ વિગેરે બધી મળી થી વિદ્યામાં પ્રવીણ હતા. પ્રભુને યોગ તેમને પચાસમાં વર્ષે ____ात ययात्रीश वसुधी भोपानना सभासभ घ्या. त्यार पछी साधुयर्याभा या मागणी माशुभाw.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600024
Book TitleKalpasutram Part_2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1959
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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