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________________ श्रीकल्प सूत्रे ॥१७॥ वसुन्धरा ८ एता अष्ट दक्षिणस्मात् रुचकपर्वतात् आगता भृङ्गारहस्तगता भगवतः त्रिशलायाश्च दक्षिणेन आगायन्त्यः परिगायन्स्यः अतिष्ठन् ।३२। इलादेवी १, मुरादेवी २, पृथ्वी ३, पद्मावती ४, एकनासा ५, नवमिका ६, सीता ७, भद्रा ८% एता अष्ट पाश्चात्त्यात् रुचकपर्वतात् आगतास्तालगन्तहस्तगता भगवतः त्रिशलायाश्च पाश्चात्येन आगायन्त्यः परिगायन्त्यः अतिष्ठन् ।४। अलम्बुषा १, मितकेशी २, पुण्डरीकिणी ३, वारुणी ४, हासा ५, सर्वगा ६, श्रीः ७, हीः ८; एता अष्ट उत्तरीयाद् रुचकपर्वतात् आगताः चामरहस्तगताः भगवतस्त्रिशलायाश्च उत्तरेण आगायन्त्यः परिगायन्त्यः अतिष्ठन् । ४८। कल्पमञ्जरी टीका मेघङ्करादि कुमा रीणाम् वसुन्धरा; ये आठ दिशाकुमारिया दक्षिण दिशा के रुचक पर्वत से आई। इनके हाथों में श्रृंगार (झारी) था। ये भगवान् और त्रिशला के दक्षिण भाग में आगान-परिगान करती हुई खड़ी रहीं (३२)। (१) इलादेवी (२) मुरादेवी (३) पृथ्वी (४) पद्मावती (५) एकनासा (६) नवमिका (७) सीता और (८) भद्रा; ये आठ दिशाकुमारिया पश्चिम दिशा के रुचक पर्वत से आई। इनके हाथ में पंखे थे। ये भगवान् और त्रिशला के पश्चिम भाग में आगान-परिगान करती हुई खड़ी रहीं। (४०) (१) अलंम्बुषा (२) मितकेशी (३) पुण्डरीकिणी (४) वारुणी (५) हासा (६) सर्वगा (७) श्री और ही; (८) ये आठ दिशाकुमारिया उत्तर के रुचक पर्वतसे आई। इनके हाथमें चमर थे। ये भगवान और त्रिशला के उत्तर भाग में आगान-परिगान करती हुई खडी रहीं (४८) आगमनम् (૮) વસુન્ધરા; એ આઠ દિવાળાએ દક્ષિણ દિશાના સૂચક પર્વત ઉપરથી આવી પહોંચી. આ આઠેની હાથમાં ઝારી ती. ५२ प्रमाणे विधि तापी, भाव 4 al. (३२) (१) March (२) सुराहेवी (3) पृथिवी (४) पावती (५) नासा (6) नाम (७) सीता (८) भद्रा; આ બાળાએ પશ્ચિમ દિશાના રુચક પર્વત ઉપરથી આવે છે. તેઓના હાથમાં પંખા હોય છે. ભગવાન અને भाताने न ४३री, भात आती २२ भी २. 2. (४०) Sani (१) मभुषा (२) भिती (3) Non (४) पाणी (५) MAI (६) स॥ (७) श्री (८) 41; मा ॥१७॥ amitr.jainelibrary.org
SR No.600024
Book TitleKalpasutram Part_2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1959
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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