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कल्प
मूलम्-नो कप्पइ निम्नथाणं वा निर्णयीणं वा वासावासे विहरित्तए ॥सू०१८॥ छाया-नो कल्पते निर्ग्रन्थानां वा निग्रन्थीनां वा वर्षावासे विहर्तुम् ॥ मू०१८॥ टीका-'नो कप्पइ' इत्यादि-व्याख्या स्पष्टा ॥ मू०१८॥ वर्षावासे पर्युषणापर्व समायाति. पर्युषणा च कदा कर्तव्या? इति दर्शयितुमाह
मूलम्--कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंधीण वा वासावासाणं सवीसइराए मासे वीइक्कते पजोसवित्तए। नो तेसिं कप्पइ तं रयणि उवाइणित्तए ॥ म्०१९।।
मञ्जरी
टीका
को एक ही स्थान पर निवास करना उचित है, यह कहा जा चुका है। इस कथन का फलितार्थ यह है कि साधु और साधियों को वर्षाकाल में विहार करना नहीं कल्पता। अतएव इस आशय को स्पष्ट करने के लिये कहते हैं-'नो कप्पइ' इत्यादि।
मूल का अर्थ-साधुओं और साध्वियों को वर्षाकाल में विहार करना नहीं कल्पता ॥०१८॥ टीका का अर्थ-इस मूत्र की व्याख्या स्पष्ट ही है ॥मू०१८॥
वर्षावास में पर्युषणापर्व आता है। अतः पर्युषण कब करना चाहिए, यह दिखलाने के लिए कहते हैं-'कप्पइ निग्गंथाणं' इत्यादि।
પર નિવાસ કરે ઉચિત છે, આ કહેવાઈ ગયેલ છે. આ કથનને ફલિતાર્થ એ છે કે સાધુ અને સાધ્વીઓને वासमा विहा२ ४ न ४८भाटे । भाशयने २५ष्ट ४२१। भाटे सूत्र॥२४ छ-'नो कप्पइ' त्याहि.
મૂલ અર્થ-સાધુ-સાધ્વીઓને વર્ષાઋતુના સમય દરમ્યાન એટલે ચાર માસ સુધી વિહાર કરે ४८पे न (२०१८)
टान म-'यातुर्मास' मामतनो २५८ माहेश पत 'सूत्र' थी NR भावे. (सू०१८)
વર્ષાઋતુમાં જ પર્યુષણ પર્વ નક્કી કરવામાં આવ્યું છે, પણ આ પર્વ કયારે અને કયાંથી ઉજવવું તે બતાवाने भाटे ४ छ-'कप्पद निग्गयाण' त्याlt.
॥८३॥
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