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________________ श्री कल्प मूत्र ||७०॥ छाया-नो कल्पते निग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा रात्रौ वा विकाले वा अध्वगमनाय एतुम् ॥ मू०१३॥ टीका-'नो कप्पइ' इत्यादि-व्याख्या स्पष्टा । नवरं-विकाले संध्याकाले मूर्योदयात्पूर्व च, अध्वगमनाय ___एतुम्-विहारं कर्तुमिति ॥ मू० १३॥ अनन्तरसूत्रे रात्रौ विकाले चाध्वगमननिषेधमुक्त्वा सम्पति तत्रैव यद् यद् वस्तु साधुभिश्च साध्वीभिश्च न ग्राड्यं, तत्सापवादमाह मूलम्-नो कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंथीणं वा राओ वा वियाले वा वत्थं वा पत्तं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा रयहरणं वा गोच्छगं वा पडिगाहित्तए । नन्नत्थ चोरचोरिएणं ॥ मू०१४ ॥ । मूल का अर्थ साधुओं और साध्वियों को रात्रि में अथवा विकाल में अर्थात् संध्यासमयमें तथा मर्योदय के पहले विहार करना नहीं कल्पता ॥मू०१३॥ टीका का अर्थ--व्याख्या स्पष्ट है। केवल-विकाल का अर्थ संध्याकाल तथा मूर्योदय के पहले का समय है । अध्वगमन का अर्थ विहार करना है ॥०१३॥ पिछले मूत्र में रात्रि और संध्या के समय तथा सूर्योदय के पूर्व विहार करने का निषेध बतला कर, उस समय में साधु-साध्वी को जो जो वस्तु नहीं लेनी चाहिए, वह अपवाद के सथ बतलाते हैं-'नो कप्पइ' इत्यादि । ॥७०॥ મૂલ અને ટીકાનો અર્થ–સાધુ-સાધ્વીઓએ રાત્રિના સમયમાં, સંધ્યા સમયે અગર સૂર્યોદય પહેલાં વિહાર કરે નહિ. ઉપરના સમયે “વિકાલ' કહેવાય છે. અધ્વગમનને અર્થવિહાર કરવું એવું થાય છે (સૂ૦૧૩) પાછળ કહેલા સમયમાં એટલે રાત્રિ, સંધ્યા સમયે અને સૂર્યોદયની પહેલાં વિહાર કરવાનો નિષેધ કરીને देते समयमा साधु-साधीमान २२ पस्तु नाही , ते अपवानी साथे मताछ-'नो कप्पई' Jain Education insursonal त्याहि. For Private & Personal Use Only SmSw.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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