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श्रीकल्प
मूत्रे
॥४७||
कल्पमञ्जरी टीका
तथा-यद्यकत्र बहवः स्वगच्छसंबन्धिनो भिन्न-भिन्न-गच्छ-संबन्धिनः साम्भोगिका वार गणावच्छेदका विहरेयुस्तत्रापि पर्यायज्येष्ठानुसारेणैव कृतिकर्म समुचितमिति मूचयितुमाह-'कप्पइ बहूणं गगावच्छेइयाण' इत्यादि । तथा-यधेकत्र बहवः स्वगच्छसम्बन्धिनः भिन्न-भिन्न-गच्छसम्बन्धिनः साम्भोगिका वा प्राचार्या विहरेयुस्तत्रापि पर्यायज्येष्ठानुसारेणैव कृतिकर्म कर्तव्यमिति मुचयितुमाह-कप्पइ बहणं आयरियाणं' इत्यादि । तथा-यद्यकत्र बहवः स्वगच्छसम्बन्धिनः भिन्न-भिन्न-गच्छसम्बन्धिनः साम्भोगिका वा उपाध्याया विहरेयुस्तत्रापि पर्यायज्येष्ठानुसारेणैव कृतिकर्म समुचितमिति मृचयितुमाह-कप्पइ बहूण उवज्झायाणं' इत्यादि। तथा-स्वगच्छसम्बन्धिनां भिन्नभिन्नगच्छसंबन्धिनां साम्भोगिकानां वा स्थविरा
तथा-यदि एक ही स्थल पर अनेक स्वगच्छ के या भिन्न-भिन्न गच्छों के सांभोगिक गणावच्छेदक हो तो वहाँ भी पर्याय-ज्येष्ठता के अनुसार ही कृतिकर्म करना चाहिए। इस बात को प्रकट करने के लिए कहा गया है--"कप्पइ बहूण गणावच्छेइयाणं" इत्यादि ।
तथा-अगर एक स्थान पर अनेक अपने गच्छ के, अथवा भिन्न-भिन्न गच्छों के सांभोगिक आचार्य विचरते हो तो वहाँ भी पर्याय-ज्येष्ठता के अनुसार ही वन्दना व्यवहार करना उचित है। यह मचित करने के लिए कहा है- “कप्पइ बहूणं आयरियाण" इत्यादि ।
तथा-यदि एक साथ अनेक अपने गच्छ के अथवा भिन्न-भिन्न गच्छों के सांभोगिक उपाध्याय हों तो वहां भी पर्यायज्येष्ठता के अनुसार ही कृतिकर्म करना उचित है। यह प्रकट करने के लिए कहा है-“कप्पइ बहूणं उबझायाणं" इत्यादि।
॥४७॥
સાંગિક ગણાવી છેદક' પછી તે એક ગચ્છના હોય અગર ભિન્ન ગછ ના હોય, એક અથવા ભિન્ન ગચછના સાંગિક આચાર્યો, ઉપાધ્યાય અને સ્થવિરે માટે આગમવાણી ફરમાવે છે કે તેઓએ પર્યાયપેન્ડઅનુસાર વંદનાવિધિ અમલમાં મૂકવી. આ “વાણ” ના મૂલ પાઠ આ પ્રમાણે છે.
'कप्पइ बहूणं गणावच्छेइयाणं' इत्यादि. 'कप्पइ बहूण आयरियाणं ' इत्यादि. ‘कप्पइ बहूणं उवज्झायाणं' इत्यादि.
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