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________________ श्रीकल्प सूत्रे ॥५६७॥ पत्तनं शकटैर्गम्यं घोटकैनौ भिरेव च । नौभिरेव तु यद् गम्यं पट्टनं तत् प्रचक्षते ॥ १ ॥ इति । निगमाः=प्रभूततरवणिग्जननिवासाः, आश्रमाः = तापसैरावासिताः पश्चादपरैरपि अधिष्ठिताः, संवाहाः= रिक्षार्थ निर्मितानि दुर्गभूमिस्थानानि, पर्वतशिखर स्थितजननिवासाः समागतबहुपथिकजन निवासा वा, सन्निवेशाः समागतसार्थवाहादिनिवासस्थानानि, एतेषां द्वन्द्व:, तेषु तथा-शृङ्गाट के पु-शृङ्गाटाकृतिकत्रिकोण" पत्तनं शकटैर्गम्यं, घोटकैनैभिरेव च । नोभिरेव तु यद् गम्यं, पट्टनं तत्प्रचक्षते ” ॥१॥ पत्तन गाड़ियों से, घोड़ों से और नौकाओं से भी गम्य होता है, किन्तु जहाँ नात्र से ही पहुँचा जाय वह पट्टन कहलाता है | ||१|| उक्तंच (९) निगम - जहाँ अत्यधिक संख्या में व्यापारी रहते हों । (१०) आश्रम - जो स्थान तापसों ने बसाये हों और बाद में दूसरे लोग भी जहाँ बस गये हों । (११) संवाह - किसानों द्वारा धान्य की रखवाली करने के लिए दुर्गम भूमि में बनाये गये स्थान, या पहाड़ी के शिखर पर की वस्ती, या इधर-उधर से आये हुए बहुत से पथिक जहाँ ठहरें वह स्थान । (१२) सन्निवेश - आये हुए सार्थवाहों (वणजारों - वाणिज्यकारों) के ठहरने के स्थान । " पत्तनं शकटैर्गम्यं घोटकैनाभिरेव च । नौभिरेव तु यद् गम्यं पट्टनं तत्प्रचक्षते ॥ १ ॥ પત્તન ગાડીઓથી ઘેાડાઓથી અને નૌકાઓથી પણ ગમ્ય હોય છે, પણ જ્યાં નાવથી જ પહેાંચી શકાય ते पट्टन वा छे. (१) (E) निगम - क्या घशी भोटी संख्यामा व्यापारी रहेता होय. (૧૦) આશ્રમ- જે સ્થાન તાપસેાએ વસાવ્યું હોય અને ત્યાર બાદ બીજા લે પણ ત્યાં વસ્યા હેય. (૧૧) સંવાહ-કિસાના દ્વારા ધાન્યના રક્ષણ માટે દુમ ભૂમિમાં બનાવવામાં આવેલાં સ્થાન, કે પહાડીના શિખર પરની વસ્તી, કે અહીં-તહીંથી આવેલ ઘણાખરા વટેમાર્ગુ જ્યાં થાભે તે સ્થાન, (१२) सन्निवेश-भावेसा सार्थवाह (वारा - वेपारीओ) ने घोलवानु स्थान.. ' For Private & Personal Use Only Jain EducationNational FACEUTICSE Teaser, कल्प मञ्जरी टीका सिद्धार्थराजभवने त्रिजृम्भक देवकृत निधान समाहरणम् ॥५६७॥ www.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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