SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 506
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एवमादयो ये गुणास्तैः पूर्णः युक्तः, मङ्गलमयत्वात् सायं मङ्गलस्वरूपत्वात् सकललोकमङ्गलजनकः-सकला= समस्ता ये लोकास्तेषां यन्मङ्गलम् शुभ-जिनोक्तधर्मप्राप्तिरूपं तस्य जनकः-सकललोकानां सद्धोपदेशक इत्यर्थः, अन एव-सकललोकहृदयकमलाधिष्ठितः-सकललोकानां यद् हृदयरूपं कमलं तत्र अधिष्ठितः स्थित:सकलननानामाराध्य इत्यर्थः, तथा-पञ्चत्रिंशद्वाणीगुणप्रतिपूर्णः-संस्कारवयम् १, उदात्तत्वम् २, उपचारोपेतत्वम् ३, गम्भीरध्वनित्वम् ४, अनादित्वम् ५, दक्षिणत्वम् ६, उपनीतरागत्वम् ७, महार्थत्वम् ८, अव्या श्रीकल्प कल्पमञ्जरी टाका ॥४५३॥ म पूर्णकलश स्वमफलम्. सरलता आदि-आदि गुणों से युक्त होगा। वह स्वयं मंगलमय होगा, अतः समस्त जनों के मंगल-जिनकथित धर्म की प्राप्ति रूप शुभ-का जनक होगा, अर्थात् समीचीन धर्म का उपदेशक होगा। समीचीन धर्म का उपदेशक होने के कारण वह सब लोगों के हृदय रूपी कमल में स्थित होगा, अर्थात् सबका आराध्य होगा। वह वाणी के पैंतीस गुणों से परिपूर्ण होगा। वे गुण इस प्रकार हैं (१) संस्कारवत्व-वाणी का संस्कारयुक्त होना-व्याकरणादि की दृष्टि से निर्दोष होना। (२) उदात्तता-स्वर का उदात्त-ऊँचा होना। (३) उपस्वारोपेतत्व-भाषा में ग्रामीणता न होना। (४) गंभीरध्वनित्व-मेघ के शब्द के समान गंभीर ध्वनि होना । (५) अनुनादिता-प्रतिध्वनियुक्त ध्वनि होना । ગુણવાળો હશે. તે પિતે મંગળમય હશે, તેથી સઘળા લેકેનું મંગળ-જિન કથિત ધર્મની પ્રાપ્તિ રૂપ શુભ-કરનાર હશે, એટલે કે સમીપીન ધમને ઉપદેશક થશે. સમીચીન ધમને ઉપદેશક હોવાને કારણે તે બધા કેના હદયરૂપી કમળમાં સ્થાન પામશે એટલે કે બધાને આરાધ થશે. તે વાણીના પાંત્રીસ ગુણેથી પરિપૂર્ણ થશે તે ગુણ આ प्रभार (૧) સંસ્કારવત્વ-વાણી સંસ્કારવાળી હેવી-વ્યાકરણ આદિની દષ્ટિથી નિરા હેવી. (२) Eludi-२१२ -या डो: (3) परवाशतत्व-भषामा गामायापन डा. (૪) ગની વનિત્વ-વાણી મેઘના અવાજ જેવી ગંભીર હોવી. (4) भनुनाहिता-प्रतिनिया पाश F ersonal use Only ॥४९३३॥ Jain Education Inter Hainelibrary.org.
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy