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________________ श्रीकल्प ८-ध्वजस्वप्नफलम् छाया-ध्वजदर्शनेन असौ समारूद-शुक्लध्यान-गजराजः सम्यग्ज्ञानेन मन्त्रिणा उपशम-मार्दवा-र्जक-सन्तोषरूपिण्या चतुरङ्गिण्या सेनया पञ्चमहाव्रतरूपैमेंटैः शमदमादिरूपैः शस्त्रायुक्तोमुनिराजोऽज्ञानमन्त्रिसहायं क्रोधमानमायालोभचतुरङ्गिणीकं ज्ञानावरणीयादिभटानुगतं रागद्वेषरूपशस्त्रास्त्रयुक्तं दुर्थ्यानगजारूढं मोहराजं जित्वा केवल-ज्ञानावरणनिस्सारणावतीर्ण-कारणक्रमव्यवधानानिवर्ति-सकललोकालोकविषय-त्रिकालस्वभाव- परिणाम-भेदानन्तपदार्थ कल्प मञ्जरी ५४८८॥ टीका ८-ध्वजाके स्वप्नका फल मूल का अर्थ-‘झयदसणेणं' इत्यादि। ध्वजा के देखने से शुक्लध्यानरूपी गजराज पर आरूढ़ होकर, सम्यग्ज्ञानरूपी मंत्री से, उपशम मार्दव आजब और सन्तोष रूप चतुरंगिणी सेना से, पंचमहाव्रतादि योद्धाओं से और शम दम आदि शस्त्रों से युक्त होकर वह बालक मुनिराज बनकर, अज्ञानरूप मंत्री जिसका सहायक है, क्रोध मान माया लोभ ही जिसकी चतुरंगिणी सेना है, ज्ञानावरणीय आदि जिसके योद्धा हैं, राग-द्वेष के अस्त्र-शस्त्रों से जो सुसज्जित है, अपशस्त-ध्यान-रूप गज पर जो आरूढ है, ऐसे मोहराज को जीतकर, केवलज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से उत्पन्न हुए, कारणों के क्रम के व्यवधान होने से कभी नष्ट न होने वाले, समस्त लोक और अलोक को जानने वाले, त्रिकालसंबंधी, ध्वजस्वम फलम् -जना २१मनु३॥ भूगन। अय-"झगदसणेणं" त्याहि. ने पाथी शुमध्यान३पी अ१२N ५२ सवार य/न, સમજ્ઞાન રૂપી મંત્રીથી. ઉપશમ, માવ, આર્જવ અને સંતોષ રૂપ ચતુરંગિણી સેનાથી, પંચમહાવ્રતાદિ દ્વાએથી, અને શમ દમ આદિ શોથી યુક્ત થઈને તે બાળક મુનિરાજ બનીને અજ્ઞાનરૂપી મંત્રી જેને સહાયક छ, बोध, भान, भाया, anी यतुशिक्षी सेना छे, ज्ञाना१२०ीय हिना योद्धा छ, -देषना अनશસ્ત્રોથી જે સુસજિજત છે, અપ્રસ્તધ્યાનરૂપી ગજ પર જે સવાર થયેલ છે, એવા મિહરાજને છતીને, કેવળ જ્ઞાનાવરણીય કર્મના ક્ષયથી ઉત્પન્ન થયેલ, કારણેના કમને અભાવ થવાથી કદી નાશ ન પામનાર, સમસ્ત લક અને અવેકને નવનાર, ત્રિકાળ સંબંધી, સ્વભાવ અને પરિણમનના ભેદથી ભિન્ન, અનન્ત પદાર્થોને પ્રત્યક્ષરૂપથી ॥४८८॥ Jain Education A nal . Anitiatan i K itor-Prifate Personal use only . INor.jainelibrary.org.
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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