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________________ श्रीकल्प कल्पमञ्जरी ॥४८४॥ टाका सकलजननयनानन्दकरश्च भविष्यति ॥मू०३५॥ टीका-'दामदुगदसणेणे' इत्यादि । व्याख्या सुगमा ॥०३५॥ ६-चंदसुमिणफलं मूलम्-चंददंसणेणं अम् भवियकुमुयकुलविगासगो जम्म-जरा-मरणाइ-जणिय-अणंत-संताब-हारगो जिणसासण-सागर-वड्ढगो अगाइ-मिच्छत्त-तिमिर-पणासगो तिहुयणाल्डायगो य भविस्सइ ।मु०३६।। ६-चन्द्रस्वप्नफलम् छाया-चन्द्रदर्शनेन असौ भव्यकुमुदकुलविकाशको जन्म-जरा-मरणादि-जनिता-नन्त-सन्ताप-हारको जिनशासनसागरवर्द्धकोऽनादिमिथ्यात्वतिमिरपणाशकत्रिभुवनाऽऽहादकश्च भविष्यति ॥स० ३६॥ आत्मिक गुणों की सुगंध से तीनों लोकों को सुगंधित करेगा, (४) सबके नयनों के आनन्दकारी होमा ॥सू०३५॥ टीका का अर्थ 'दामदगदसणेणं' इत्यादि । इस सूत्र की टीका सुगम है ॥९०३५॥ ६-चन्द्रस्वप्न का फल मूल का अर्थ-'चंददसणेणं' इत्यादि। चन्द्रमा के देखने से, (१) वह बालक भव्यजनरूपी कुमुदों के कुल का विकास करने वाला (२) जन्म, जरा, मरण आदि से उत्पन्न होने वाले अनन्त सन्ताप को दूर करने वाला, (३) जिनशासनरूपी सागर की वृद्धि करने वाला, (४) अनादिकालीन मिथ्यात्वरूपी अन्धकार का नाश करने वाला और (५) त्रिभुवन को आडाद करने वाला होगा ।।मु०३६॥ સુગંધિત કરશે. () સૌનાં નયનોને આનંદકારી થશે (સૂ૦૩૫). टीन। अर्थ-'दामदुगदसणेण' त्यादि. 20 सूत्रनी सुगम छे. (सू०३५) -यंदना १kण भूजन अर्थ-चनसणं' वाहि. यन्द्रभाने वायी ते माण (१) भव्यन३५ो भुना सभूडान વિકાસ કરનાર, (૨) જન્મ, જરા, મરણ આદિથી ઉત્પન્ન થતા સંતાપને દૂર કરનાર, (૩) જિનશાસનરૂપી સાગરની વૃદ્ધિ કરનાર, (૮) અનાદિકાળના મિથ્યાત્વરૂપી અંધકારને નાશ કરનાર, અને (૫) ત્રણે ભુવનને આનંદિત दामद्विक स्वप्रफलम. 2 ॥४८३॥ Locolai nedtaliactiCADEMANISHCHshalaANAKYAD Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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