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________________ कल्प मञ्जरी टीका सकलजनमनोऽनुरागहेतुत्वात्, इत्येवंभूतान् चतुर्दशसंख्यकान् महास्वमान् दृष्ट्वा प्रतिबुद्धा जागरिता, ते खलु स्वमा इमे-गजः१ वृषभः२ सिंहः३ लक्ष्मीः४, दाम-माल्यं ५, शशीचन्द्रः६, दिनकरः मूर्यः७, ध्वजा-पताका ८, श्रीकल्प- कुम्भः कलश:९, पद्मसरः कमलसहितः सरोवरः१०, सागर: समुद्रः११, विमानभवनम् १२, रत्नोच्चयः-रत्नराशिः १३, शिखी अग्निः१४ चेति ॥मू० १४॥ ॥४०३॥ १-गयसुमिणे मूलम्-तत्थ खलु तिसला खत्तियाणी तप्पढमयाए चउदंतं समुत्तुंगंगं निजलविशाल-जलहर-घणसार-हार-तुसार-नीर-खीरसायर-निसायरकर-रययगिरिवर-पंडुर-सरीरं भमंत-मंजुगुंजंत-मिलिंद-विंदा-लंकिय-सुगन्ध-बंधुर-दाणधारा-कलिय-कवोल-जुयल-मूल-रुइरं पुरंदर-कुंजरवर-सहोयरं ललाम-लीलायरं जल-संवलिया-डंबर-करंबिय-विउल-जलहर-गज्जिय-गंभीर-मंजु-णिणयं नयणसुहयं गयवर-सयल-लक्खण-लक्खियं वरोरुं मंगलं करिवरं पासइ ॥मू०१५॥ १-गजस्वप्नः छाया-तत्र खलु त्रिशला क्षत्रियाणी तत्प्रथमतया चतुर्दन्तं समुत्तुङ्गाङ्गं निर्जल-विशाल- वे स्वम ये हैं-(१) गज (२) वृषभ (३) सिंह (४) लक्ष्मी (५) माला (६) चन्द्रमा (७) सूर्य (८) ध्वजा (९) कमल (१०) कमलयुक्त सरोवर (११) सागर (१२) विमान (१३) रत्नराशि (१४) धूम से रहित अग्नि ॥मू०१४॥ १-गजस्वप्न मूल का अर्थ-'तत्थ खलु तिसला' इत्यादि। उनमें से त्रिशला क्षत्रियाणी, सबसे पहले श्रेष्ठ गज को देखती है। वह गज चार दांतों वाला था। उसका शरीर खुब ऊँचा था और निर्मल विशाल (२) वृषभ (3) सिंड (४) सभी (५) भाणा (6) यन्द्रमा (७) सूर्य (८) ५01-ydist (6) (१०) भगे। पाणुसरोवर (११) सा२ (१२) विमान (13) रत्नान ग (१४) धूमा विनानो मनि ॥सू०१४।। १-१२वन भूगन म-"तत्थ खलु तिसला" त्याहि. - તેમાં સૌથી પહેલાં ત્રિશલા ક્ષત્રિયાણી શ્રેષ્ઠ હાથીને જીવે છે. તે હાથી ચાર દંતશૂળવાળો હતો. તેનું રીતે શરીર ઘણું ઉંચું હતું તથા નિર્જળ વિશાળ જળધર (મેઘ), કપૂર, હાર, બરફ, જળ, ક્ષીરસાગર, ચન્દ્રમાનાં કિરણે गजस्वमवर्णनमः ॥४०३॥ ના હૈ iww.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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