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________________ श्रीकल्प कल्प मञ्जरी ॥१७॥ स्थिरतारहितानि, अतएव चञ्चलानि गत्वराणि प्रतिक्षण-क्षणेक्षणे श्रीयमाणानि अवधार्य-स्वमनसि निश्चित्य सकलसुखनिधानं सर्वसौख्यस्थानं सम्यक्त्वप्रधानं मुनिनाथवचनसंदिष्टं मुनिवरवचनद्वारोपायनीकृतं विशिष्टं महान्तं जिनोपदिष्टं तीर्थकरनिर्दिष्टं धर्म हृदये मनसि धारयन् स्थापयन् सहचरानपि सहगामिनोऽपि जनान् तं धर्म प्रतिबोध्य-ज्ञापयित्वा स्व-निजं स्थान निवासं प्रत्यगच्छत परावृत्य गतः ॥ मू०८॥ मूलम्-तए णं सो नयसारो गएसु कइपएसु वरिसेसु विसुद्धज्झाणजलविसोहियदुभावमलो सब्भावभावियप्पो मुणिकप्पो कालमासे कालं किच्चा उक्किद्वभावभरियचेयसा मुणिणाहविसुद्धाहारपाणप्पदाणप्पभावेण बीए भवे सोहम्मे कप्पे पलिओवमहिइयदेवत्ताए उववन्नो ॥ मू०९॥ छाया-ततः खलु स नयसारो गतेषु कतिपयेषु वर्षेषु विशुद्धध्यानजलविशोधितदुर्भावमलः सद्भावभावितात्मा मुनिकल्पः कालमासे कालं कृत्वा उत्कृष्टभावभृतचेतसा मुनिनाथविशुद्धाहारपानप्रदानप्रभावेण टीका हुए जल के समान अस्थिर हैं, अत एव चंचल हैं और क्षण-क्षण में क्षीण होते चले जा रहे हैं। इस प्रकार - अपने मन में निश्चित करके वह समस्त सुखों के कारणभूत सम्यक्त्व को तथा मुनिराज के वचनों द्वारा प्राप्त, महान् , तीर्थकर प्ररूपित धर्म को अन्तःकरण में धारण करता हुआ तथा अपने साथियों को भी धर्म का प्रतिबोध देता हुआ अपने निवासस्थान पहुँचा ।।मू०८|| मूल का अर्थ-'तए णं' इत्यादि । तदनन्तर कुछ वर्षों के व्यतीत होने पर विशुद्ध ध्यानरूपी से दुर्भावरूपी मल को धो डालने वाला, मद्भावनाओं से भावित आत्मावाला, अत एव साधु के महावीरस्य नयसारनामकः प्रथमो आजकालमां हूं तुं करतां, जमडा पकडी जाशे जी, ब्रह्मानंद कहे चेत अज्ञानी, अंते फजेती थाशे जी ॥” ઉપરની પંકિતઓનો રંગ “નયસાર ને લાગ્યો ને જીવન ડામાડેલ થવા લાગ્યું. આજસુધીના ભાવ પર દષ્ટિપાત કરતાં ઘણે પસ્તાવો થવા લાગ્યું, ને ‘આ દેહને માટે આત્માને અનંતીવાર ગાયે પણ એક જ વખત આત્મા’ ને માટે તપસંયમથી દેહને ગળાય તે કેવું સારું?” આ સૂત્ર તેના મગજમાં રમી રહ્યું. ને સાચી dain Educationalitimeभए ने निश्चय साथे, स्वस्थाने पाछ। यो (सू०८)ersonal use Only ॥१७०॥ STATESww.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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