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________________ श्रीकल्प सूत्र ॥१४५|| कल्पमञ्जरी टीका (२) द्वितीयाभिहस्तोत्तराभिरिन्द्रकारितगर्भसंहरणादिकम् ।। (३) तृतीयाभिहस्तोत्तराभिरिन्द्रकृतजन्ममहिमबालक्रीडादिकम् । (४) चतुर्थीभिहस्तोत्तराभिर्दीक्षापर्यन्तो जीवनवृत्तान्तः। (५) पञ्चमीभिर्हस्तोत्तराभिः सर्वश्रामण्यवृत्ति-केवलज्ञानोत्पत्ति-विहारचर्यादिकम् । "स्वात्या पारिनितः" अनेन केवलज्ञानानन्तरं मोक्षगमनपर्यन्तं सर्व चरित्रं वर्णयितव्यं भवति ॥१०॥ टीका-'एएण' इत्यादि । व्याख्या निगदसिद्धा ॥म्०२॥ । ___ मृलम्-एएण संखेवओ भगवओ सिरिवद्धमाणसामिस्स सव्वं जीवणचरियं वण्णिय,तत्थ भगवं वीरो तित्थयरोत्ति तस्स तित्थयरनामगोत्तकम्म-बंधगनिबंधण-चरित्तचित्तिय-भवभवंतरा-णेगविहकहाऽवि कम्मवेचित्तप्पदंसगत्ताए सद्धाधणाणं सद्धादीणं दुरंत-संसार-कंतारंतर-मुत्तितीमणमवस्समंतोमलपक्खालणत्थं सवणगोयरयं उवणेयत्ति २ दूसरी हस्तोत्तरा से इन्द्र द्वारा करवाया हुआ गर्भसंहरण आदि। ३ तीसरी हस्तोत्तरा से इन्द्रकृत जन्ममहोत्सव तथा बालक्रीडा आदि । (४) चौथी हस्तोत्तरा से दीक्षा तक का जीवनवृत्तान्त । (५) पाँचवी हस्तोत्तरा से श्रमण-पर्याय का वर्णन, केवलज्ञान की उत्पत्ति और विहारचर्या आदि। 'साइणा परिणिब्दुए'-अर्थात् स्वाति नक्षत्र में मोक्ष पधारे. इससे केवलज्ञान के अनन्तर मोक्षगमन तकका समस्त चरित्र वर्णित हो जाता है ॥मू०२॥ टीका का अर्थ-व्याख्या सरल ही है ।मु०२॥ (૨) બીજી હસ્તત્તરાથી ઇંદ્ર દ્વારા કરાયેલું ગર્ભસંહરણ આદિ. , (૩) ત્રીજી હસ્તિત્તરાથી ઈદ્રકૃત જન્મમહોત્સવ તથા બાલક્રીડા આદિ. (४) योथी स्तोत्तथी दीक्षा सुधार्नु वनवृत्तांत. (૫) પાંચમી હતેારાથી શ્રમણ-પર્યાયનું વર્ણન, કેવલ જ્ઞાનની ઉત્પત્તિ અને વિહાર ચર્યા આદિ. 'साइणा परिणिब्बुए'-यात् २१ातिनक्षत्रमा भाले पार्या, मेथी पक्ष शान पछी भीक्षामन सुधीनु मधु यरित्र पर्णित थाय छे. (सू०२) का उपोद्घातः ॥१४५॥ Jain Education int ona! ॥ णय-याचा स . PR /Private &Personal use Only Cithw.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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