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________________ पत्रलेखनं तु साधुभिन कदापि कर्तव्यम्, अतस्तद्विषये आचार्यादीनां पृच्छाऽपि न युज्यते इति पत्रलेखननिषेधं वक्तुमाह मूलम्--नो कप्पइ निग्गंधाणं वा निग्गंधीणं वा सयं पत्तं लेहित्तए ॥मृ०३९ ॥ छाया--न कल्पते निर्ग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां स्वयं पत्र लेखितुम् ॥मू०३९॥ टीका--'नो कप्पइ' इत्यादि। निर्ग्रन्थानां वा निग्रन्थीनां वा कस्यचित् साधोः कस्या चित् साध्व्याः श्राक्कस्य श्राविकायाः संघस्य च सविधे स्वयं पत्रं लेखितुं न कल्पते इति ॥९०३९ ॥ निपिद्धप्रस्तावात् अन्यदपि निषिद्धमाह-- मलम्--नो कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंधीणं वा नवं अणुप्पणं अहिंगरणं उप्पाइतए, पोराणं खामियं विउसमियं अहिंगरणं पुणो उईरित्तए । ०४०॥ कल्पमञ्जरी टीका साधुओं को पत्र कभी लिखना ही नहीं चाहिए, अत एव उस विषय में आचार्य आदि से पूछने का प्रश्न ही नहीं उठता। यहाँ पत्रलेखन का निषेध कहते हैं-'नो कप्पइ' इत्यादि । मूल का अर्थ-साधुओं और साध्वियों को स्वयं पत्र लिखना नहीं कल्पता ॥मू०३९॥ टीका का अर्थ–साधुओं और साध्वियों को किसी साधु, किसी साध्वी, श्रावक या श्राविका अथवा संघ के लिए स्वयं पत्र लिखना नहीं कल्पता ॥मू०३९॥ निषिद्ध का प्रसंग होने से अन्य निषिद्ध कार्य कहते हैं-'नो कप्पइ' इत्यादि । સાધુઓએ પત્ર કદિ લખ જ ન જોઈએ, એટલે એ બાબતમાં આચાર્યાદિને પૂછવાનો પ્રશ્ન જ ઊઠત નથી. ही पत्रमनन निषेध ४२०i ४ -"नो कप्पइ" त्यादि. भूगनी मथ-साधु-साध्वीमाने ते पत्र पानु ४८५तु नथी. (सू०३८) ટીકાનો અર્થ–સાધુ-સાધ્વીઓને કઇ સાધુ, સાધ્વી, શ્રાવક યા શ્રાવિકાને માટે અથવા સંઘને માટે પત્ર समय पता नथी. (सू०३८) निधन प्रसडापाथी भी निषिद्ध आय ४ छ-"नो कप्पइ" त्याह. ॥११९॥ Jain Education Intonal For Private & Personal Use Only 50w.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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