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श्रीसकलपरमात्मने नमः।
प्रद्युम्नचरित्र
( अनुवादकका मंगलाचरण ) श्री अरहन्त जिनिंदको, वन्दों मन वच काय । छयालिस गुन जिनमें लसे, प्रातिहार्य सुखदाय ॥ १ ॥ अष्टकर्मको नष्ट करि, सिद्ध अष्ट गुणसंग। अष्टमधरा विराजते, नमो नाय अष्टांग ॥ २ ॥ पंचाचार प्रचारते, मुनिजनशासक सूरि । राजत गुण छत्तीसयुत, नमों अवर गुणभूरि ॥ ३॥ द्वादशाङ्ग वाणी विमल, पारंगत उवझाय। गुण पचीसयुत राजते, वन्दों शीस नवाय ॥ ४ ॥ अट्ठाइस गुण धारि जो, सर्वसाधु कहलाहिं । धरै दृष्टि सम सवनिपर, जयवन्तो जगमाहिं ॥ ५ ॥ हे जिनवाणी भगवतो, निवसो मम उर श्राय । जातें बुद्धि विकास हो, मोह तिमिर मिट जाय ॥ ६ ॥ सोमकीर्तिप्राचार्यकृत श्रीप्रद्युम्नचरित्र । मन्दमती भाषा करन, उमगानों में चित्त ॥ ७ ॥
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