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________________ प्रचम्न ३४० वेही उपवाससे अपने शरीरको क्षीण करके कोदोंका (कोद्रवका) भी आहार लेते हैं । पहले जिनकी अनेक राजा सेवा करते थे, और जिन्होंने सम्पूर्ण राजलक्ष्मीको छोड़कर तपोवनका आश्रय लिया था, वे ही मानी ध्यानी अब मुनियोंके नाथ होकर पृथ्वीपर बिहार करते हैं । देवोंके राजा भी उनकी बन्दना करते हैं । और जिन्होंने विद्याधर तथा भूमिगोचरी राजाओं की अनेक कन्याओंके साथ विवाह करके उनके साथ चिरकाल तक भोग भोगे थे, और उद्वेगसे उसका त्याग करके दीक्षा ली थी, उन्होंने कान्ति, कीर्ति, क्षमा, बुद्धि और दयारूप स्त्रियोंका त्याग नहीं किया ! आचार्य कहते हैं कि, इसमें हमको अचरज मालूम पड़ता है । ३८-४७। जो रसिक कामकुमार सम्पूर्ण राजाओं के शृङ्गाररूप अचरजकारी सोलहों श्राभरण धारण करते थे, वे ही अब द्वादशांगरूपी शृङ्गारसे विभूषित ऐसे वीतराग हो गये हैं, कि उनकी कामचेष्टा के अस्तित्वका लोग अनुमान भी नहीं कर सकते हैं - नहीं जान सकते हैं । जिन्होंने अपने पहले दिन सुन्दर स्त्रियों के गीत नृत्यों में तथा ततसे लेकर सुपिर पर्यन्त नानाप्रकार के बाजों में मोहित होकर बिताये थे, वे ही योगीश्वर अब धमध्यानके रस में मग्न होकर ऐसे गहन वनों में समय व्यतीत करते हैं, जहां श्याल सिंह यादि जानवरों के शब्दों से भय मालूम होता है । जो पहिले हाथियों, घोड़ों, चन्द्ररथ समान रथों और सेवकों से सेवित होकर अपनी लीलासे भ्रमण करते थे वे ही गुप्ति परायण योगीश्वर होकर यात्मध्यान में अतिशय लवलीन हुए पवित्र पृथ्वीपर विहार करते हैं । जो चतुरा पंडिता स्त्रियों के साथ गाथा दोहा आदि मनोहर छन्दों में सरल स्नेहयुक्त सत्यासत्य भाषण करते थे, वे ही अब सब जीवों पर दया करनेवाले योगी होकर शास्त्रानुसार हितकारी परिमित उपदेश देते हैं । ४८-५५ । जो पहिले सोने तथा रत्नादि के पात्रों में स्त्री पुत्रादिको के सहित षट्रस भोजन बड़े विनोदके साथ करते थे, वे ही अब सब प्रकार के दोषों से रहित, त्रिशुद्धिसहित, जिनभaaraat कही हुई के अनुसार, केवल शरीर पिण्डकी रक्षा के लिये आहार लेते हैं । जो पहले For Private & Personal Use Only Jain Education International चरित्र www.jainelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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