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________________ चरित्र ३३६ आदररहित वचनोंसे, और अपमानसे उन क्षमाधारी विवेकी मुनिश्वरका अन्तःकरण जरा भी चलित नहीं हुअा-मेरुके समान अचल रहा ।२४-२८। चलनेमें, लेटनेमें, बैठनेमें, भोजनमें, देखनेमें, विचारने तथा पठन पाठनमें वे शांतहृदय वाले तथा उत्तम चेष्टाके धारण करनेवाले योगी उत्कृष्टमार्दवको धारण करते हुए शोभित हुए। अर्थात् उनके सम्पूर्ण बर्ताओंमें कोमलता निरभिमानता दिखलाई देती थी ।२६-३०। वे उत्कृष्ट आर्जव गुणके धारण करनेवाले मुनि मन वचन और कायसे पृथकपनेका चितवन करते थे। अर्थात् श्रात्माको मन वचन कायसे पृथक ध्यान करते थे। धीर पुरुषोंके अगुए, पराक्रमी और बड़े २ योगी जिनकी बन्दना करते थे, ऐसे वे योगी निरन्तर विचार करते थे। कि आत्मा न्यारा है शरीर न्यारा है। और उत्तम शौच, उत्तम संयम, तप, त्याग, सत्य, शरीरमें भी निर्लोभिता (आकिंचन), और ब्रह्मचर्य इन जिनेन्द्र भगवान के कहे हुए धर्मो को जो कि मोक्षमार्गका आदेश करने वाले, संसारसमुद्रके सोखने वाले, सच्चे और सम्पूर्ण गुणोंवाले हैं, धारण करते थे।३१-३५।। जिसप्रकार राज्यावस्थामें सम्पूर्ण रिपुत्रोंको जीत लिया था, उसीप्रकारसे उन्होंने नधा तृषादि ऐसी कठिन परिषहोंको जीतीं, जिन्होंने कि अन्य लोगोंको जीत लिया था, जो विषय थीं, क्षुद्र लोगोंको ठगने वाली थीं- और पापी तथा छली लोगोंकी प्यारी थीं।३६-३७। जो कामकुमार पहले वृन्त रहित फूलोंकी कोमल मशहरीदार शय्यापर तकिया लगाकर शयन करते थे, वे ही प्रद्युम्नमुनि अब साधुवृत्तिसे तिनके और कंकड़ चुभानेवाली खाली जमीनका सेवन करते हैं। पहले सफेद छत्रादिकोंसे जिन्हें धूप नहीं लगने पाती थी, तथा उष्णताके निवारण करनेके लिये जो चन्दनका लेप करते थे, वे ही अब ध्यानी तथा योगी होकर पर्वतके मस्तक पर खड़े होकर संसारका क्षय करनेके लिये सूर्यकी तीव्र किरणों का आताप सहन करते थे। जो पहिले कामिनियों के कोमल हाथोंके बनाये हुए, छह रसयुक्त, अत्यन्त स्वादिष्ट उत्तमोत्तम व्यंजनोंका भोजन करते थे, Jain Educatio international For Private & Personal Use Only www. library.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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