________________
प्रद्यन्न
३३१
Jain Educati
है ? | २३ - ३० | क्या आप नहीं जानते हैं कि यह मृत्यु आयुके क्षीण होने पर सब जीवोंका भक्षण कर जाती है । न बालकको देखती है, न कुमारको देखती है, न विद्वानको छोड़ती है, न मूर्खको छोड़ती है, न रूपवानको बचाती है, न कुरूपको बचाती है । इसीप्रकार से सुशील, शीलरहित, गुणी, निर्गुणी, शूर, कायर, और जवान बूढ़ा यदि जिसको पाती है, ले जाती है। फिर मैं जवान हूँ, भोग भोगने के योग्य हूँ, गुणवान हूँ, इसलिये क्या मौत मुझे बचा देगी ? । ३१-३२ । यदि ऐसा है, तो बताओ भरत चक्रवर्तीका पुत्र तथा सुलोचनाका पति मेघेश्वरकुमार कहां गया, जो स्त्रियों का प्रतिशय प्यारा था आदिनाथ भगवान के भरत चक्रवर्ती तथा प्रादित्यकीर्ति यदि प्रतापी पुत्र कहां गये ? बलवान बाहुबली भी कहां गये ? नमि यदि विद्याधर राजाओं का क्या पता है, इस प्रकार अनेक वैराग्य उत्पन्न करने वाले वचनोंसे पिताको समझाकर और शम्बुकुमार को अपने पदपर स्थापित करके प्रद्युम्न कुमार अपनी माताके महलको गये । ३३-३६॥
रुक्मिणी माता के चरणकमलोंको नमस्कार करके प्रद्युम्न कुमार बोला, हे माता ! बालकपन से लेकर अभीतक मैंने जो कुछ अनिष्ट किये हों इससमय प्रसन्न होकर उन सबको क्षमा प्रदान करो। मैं बालक हूँ। और पूज्यपुरुष जितने होते हैं, वे क्षमाके करनेवाले होते हैं । बालकों पर वे सदा क्षमा करते हैं। मैं अब दिगम्बरी मुनियोंके व्रत ग्रहण करता हूँ, जो सम्पूर्ण कर्मरूपी तिनकों को जलाने के लिये दावानल के समान हैं, शीलादि बड़े २ रत्नोंके रत्नाकर हैं, गुणोंके मन्दिर हैं और जिन्हें पूर्व पुरुषोंने वनमें जाकर ग्रहण किये हैं । हे माता ! इस विषय में अब तुझे कुछ भी नहीं कहना चाहिये अर्थात् रोकना नहीं चाहिये । ३७-४०। पुत्रके इस प्रकार दीक्षा लेने के वचन सुनकर माता अतिशय दु:खी हुई और मूर्छित होकर धरती में गिर पड़ी जैसे कि जड़के कट जानेसे वल्लरी (बेल) प्रभाहीन होकर गिर पड़ती है थोड़ी देर में जब चेतना हुई तब रुक्मिणी बोली, हे बेटा !
1
।
International
For Private & Personal Use Only
चरित्र
www.nelibrary.org.