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चरित्र
होनेका समाचार सुनकर कमलिनी दुःखसे मलिनमुख हो गई और भौरोंके शब्दोंके मिससे मानों रोने प्रयम्न ही लगी। संध्या, सिन्दूर कुसुम्भ तथा टेसूके फूलोंकी शोभाको धारण करने लगी अर्थात् लाल
हो गई। मानों वह द्वारिकाके जलनेकी पहलेहीसे सूचना देने लगी ७१-७४। सूर्यके परलोक हो जानेके शोकसे लाल अम्बर (वस्त्र तथा अाकाश) को धारण करनेवाली संध्या रोती २ नष्ट हो गई। दिन अस्त होने पर पक्षियों का जो कोलाहल होता है, वही उस संध्यारूपी स्त्रीका रोना था ।७५। संध्याके बीत जाने पर अन्धकारके परमाणु दशों दिशाओंमें फैल गये । वे ऐसे मालूम पड़ते थे, मानों
आगे जो आग लगने वाली है, उसके धुएंके अंशही उड़ उड़कर फैल गये हैं।७६। अज्ञानको तथा निरुत्साहको बढ़ाता हुआ और कुमार्गमें मनको भरमाता हुआ अन्धकार मिथ्या श्रद्धान कराने वाले मोहजालके समान विश्वव्यापी हो गया ।७७। फिर क्या था, क्षणभरमें तारागण दिखलाई देने लगे। अल्प बुद्धिवाले लोक प्रायः अन्धकारमें ही शोभा देते हैं, अर्थात् जहां अज्ञान होता है, अल्प बुद्धिवाले वहीं प्रतिष्ठा पाते हैं ।७८। थोड़ी देरमें अन्धकारको नष्ट करते हुए और कुमुदोंको प्रफुल्लित करते हुये निशानाथ अर्थात् चन्द्रदेव उदित हुए, जिनके पति परदेश गये थे, उन स्त्रियोंके लिये वे बड़े ही भयङ्कर थे।७। संयोगिनी स्त्रियोंने शरीरका श्रृंगार करना पतिके अपराधसे रूसना और दतियों को भेजना अथवा दूतियों के आनेकी बाट देखना आदि कार्य प्रारंभ कर दिये । क्रम क्रमसे स्त्री पुरुषों में रति क्रीड़ा होने लगी। बहुतसे लोग कामभोगों में निमग्न हो गये । परन्तु कई विचारवान पुरुष इसप्रकार चिन्ता करके कामभोगों से विरक्त होगये कि जिसको साक्षात् इन्द्रकी प्राज्ञ से कुबेरने बनाई थी, वही द्वारिका नगरी यदि नष्ट होनेवाली है, तो इससंसारके उदर में और क्या शाश्वत् स्थायी हो सकता है ? कंस आदि मत्त हाथियों के लिये जो सिंहके समान था, उसी श्रीकृष्णनारायणकी नगरीको कोई जला देगा, यह बड़ा अचरज है।८०-८३। सच है, सम्पूर्ण जीवधारियों का जीवन और वैभव स्वप्नके
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