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प्रचन्न
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तो वह कन्या जैसी चाहिये वैसी थी । परन्तु ज्यों ही पाणिग्रहण का समय आया, त्योंही, उसने व्याघ्र का (बाघका रूप धारण कर लिया । १०-१२। और सुभानुकुमार को पंजेके याघात से ऐसा पटका कि, वह मूर्छित होकर धरती में गिर पड़ा। और जितने लोग वहां थे, वे सब भयभीत होकर गिरते पड़ते भागे । यह कौतुक करके व्याघ्रवेषधारी शम्बुकुमार हँसता हुआ श्रीकृष्णकी सभा में जा पहुँचा ।१३-१४ । उसे देखकर श्रीकृष्णजीको अचरज हुआ। पीछे उन्होंने प्रद्युम्न कुमार की लीला समझकर उसे प्रसन्नता के साथ श्राश्वासन देकर बिठाया | १५ | इस चरित्र से शम्बुकुमारकी माता बड़ी श्रानन्दित हुई और सत्यभामा मदरहित होगई लज्जाके मारे उसका मुखकमल कुम्हला गया | १६ | सत्यभामाने इस घटना से दुःखी होकर एक दूतको अपने पिताके पास भेजा, और यहांका सब समाचार कहला भेजा । उसे सुनकर सत्यभामा के पिताने जो कि विद्याधरोंके राजा थे, सौ सुन्दर कन्यायें भेज दीं । सो उनके साथ सुभानुकुमार का विवाह कर दिया गया । विवाह बड़े उत्सव और धूमधाम के साथ हुआ। सौ स्त्रियों को पाकर सुभानुकुमारको बड़ा भारी गर्व हुआ। उनके साथ वह रातदिन श्रानन्दकीड़ा करने लगा ॥ १७-१९॥
सुभानुकुमारको विवाहित देखकर प्रद्युम्न कुमार ने शम्बुकुमार के लिये अपने मामाकी कन्यायों की याचना की । क्योंकि लोगोंके मुंह से सुना था कि वे बड़ी ही सुन्दरी हैं। परन्तु मामाने कन्या देनेसे इन्कार कर दिया | २०| इससे प्रद्युम्नकुमार रुक्मण नरेश अर्थात रूप्यकुमार पर बहुत क्रोधित हुए। दोनों भाई चांडालका वेष धारण करके कुण्डनपुरको गये और रुक्मणमहाराजकी सभा में पहुँचे । दोनोंका रूप बहुत ही सुन्दर था । दोनोंने पिनाकी (?) बजाते हुए गीत गाना प्रारम्भ किये, सो जल्द ही सम्पूर्ण लोगोंको मोहित कर लिये । राजा रूप्यकुमार तो ऐसा प्रसन्न हुआ कि, उन्हें मनमाना दान देनेतो तैयार हो गया । जिससमय लोग इसप्रकार रंजायमान होकर तन्मय हो रहे थे,
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चरित्र
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