SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पन्न | चरित ३०३ जब वसन्तऋतुका इसप्रकार राज्य हो रहा था, तब सुभानुकुमार अपने मित्रोंके साथ सवारी सहित वनक्रीड़ा करनेके लिये गया । बन्दी उसकी स्तुति करते थे । वसन्तका वैभव देखनेके लिये ज्यों ही वह वनमें जाकर बैठा, त्योंहो वहांपर बहुतसी स्त्रियोंने झूलोंमें बैठकर कामोद्दीपक गीतोंका गाना प्रारम्भ कर दिया। नानाप्रकारके विकारोंसे युक्त, ऊंचे और बारीक अावाजसे मनोहर और मानी नायक नायिकाओंके मानको खण्डन करनेवाले, उन स्त्रियोंके मुखसे निकले हुये मनोहर गीतों को सुनकर सुभानुकुमार कामके बाणोंसे घायल हो गया ।९९-२०३। उसका चित्त चुरा लिया गया-छल लिया गया। जब वह मूञ्छित होकर गिर पड़ा, तब सेवक लोग उसे सत्यभामाके महलमें ले गये। और वहां उन्होंने उसका सब वृतान्त कह दिया। उसे अचेतन देखकर सत्यभामाने भी जान लिया कि, मेरा पुत्र अब विवाहके योग्य हो गया है।४-५/ निदान अपने मनमें बहुत देरतक सोच विचार करके उसने अपने मन्त्रियोंसे कहा कि, तुम एक कपटलीला इस तरह की रचो कि, कन्याकी याचना करनेके लिये जानो, और इस तरह से आ जाओ, जिसमें कोई भी न जानने पावै । आज्ञानुसार मंत्रिलोग गये और कार्य सिद्ध करके आ गये ।६-७। उनके आ जाने पर सब लोगोंने जाना कि, सत्यभामाके पुत्रका विवाह ठीक हो गया है। मंत्री लोग कन्याकी याचना करनेको गये थे, सो ले आये हैं। सुभानुकुमार बड़ा पुण्यवान है।। तदनन्तर नगर के बाहर एक स्थानमें उस श्रेष्ठ कन्याको गुप्तरूपसे पहुँचा दी और आप स्वयं हथिनीपर बैठकर उसके लेने के लिये गई । उसे भय था कि कहीं यह बात प्रद्युम्नको मालूम न हो जावे । निदान उस कन्या को अपनी गोदमें बैठाकर वह बड़े भारी उत्सवके साथ चौराहे से होती हुई अपने महलमें ले आई। गलीमेंसे होकर महलके भीतर ले गई। लग्नका समय हो गया था, अतएव सुभानुकुमार तोरणके लिये गया। वहां दासियोंने उस कन्याकी जो जो मांगलिक क्रिया होती हैं, सो की । उस समय तक ___ Jain Educauth intemational For Private & Personal use only www. a library.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy