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चरित
प्रशम्न २१५
क्रीड़ा करने लगी। सुरतके समय उसके नेत्र मधुपानके मदसे लाल हो रहे थे, और शरीर पसीनेके बिन्दुओंसे सराबोर हो रहा था। ठण्डी २ हवासे उसकी थकावट मिट जाती थी।८०.८२।
इसप्रकार सुरत लीला समाप्त होनेपर पुण्यके योगसे उसीसमय कोई देव स्वर्गसेचयकर सत्यभामा के गर्भमें आगया। फिर श्रीकृष्णजीने कोई एकदूसरा सुन्दरहार सत्यभामाकोदिया। सो उसको लेकर और गलेमें पहिनकर वह बहुत सन्तुष्ट हुई।८३॥ सो ठीक ही है, भाग्यके अनुसार ही सब कुछ मिलता है । जाम्बवतीको वह देवका दिया हुअा हार मिला और सत्यभामाको उसके बदले एक दूसरा साधारण हार मिला । इसके अनन्ता श्रीकृष्णजी सत्यभामाके सहित द्वारावतीमें आ गये । इनके नगर प्रवेशके समय बड़ा भारी उत्सव किया गया।८४। श्रीकृष्णजीकी उन दोनों प्यारी रानियोंके बढ़ते हुए गर्भ सम्पूर्ण यदुवंशियोंके मनको हरण करने वाले हुए। अर्थात् उनसे सबका चित्त प्रसन्न हुआ।८५। सत्यभामा
और जांबुवतीको गर्भवृद्धिसे जो अनेक प्रकारके मनोरथ ( दोहले ) होते थे, उन्हें भानुकुमार और प्रद्युम्नकुमार पूर्ण करते थे ।८६। उनके गर्भो की बढ़तीके साथ साथ यादवोंके महलोंमें विभूतिकी भी अतिशय बढ़ती होने लगी। धनधान्य सुख शान्ति आदि सब कुछ वृद्धिको प्राप्त होने लगे।८७-८८।
जब सत्यभामाने सुना कि, जांबुवती भी गर्भवती है, तब उसने घमंडसे सोचा कि, उसके गर्भ में आया होगा कोई ! मुझे उससे क्या ? जो सोलहवें स्वर्गसे च्युत हुआ है, वह तो निश्चयपूर्वक मेरे ही गर्भ में आया है। फिर किसी दूसरे सामान्य पुत्रोंसे क्या प्रयोजन है ? १८९-९० । उसने यह भी सोचाकि, जब मेरे गर्भ में प्रद्युम्नकुमारकापूर्वभवका छोटाभाई आया है, तब वह मेरी भक्ति क्योंनहींकरेगा अर्थात् अपने छोटे भाईके सम्बन्धसे प्रद्युम्न भी मेरा भक्त हो जावेगा।९१। इधर सत्यभामा इसप्रकार के विचार कर रही थी, उधर जांबुवतीके गर्भके नो महीने पूरे हो गये ।।२। अतएव उसने शुभमुहूर्त, शुभयोग, शुभलग्न और शुभदिनमें एक मनोहर कल्याणरूप पुत्र जना ।।३। उस सुन्दर बालकका
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