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________________ २६४| कर्मों की प्रेरणा होती है, तब बुद्धिमान पुरुष भी क्या कर सकता है ? उसका दैव उसकी सब क्रियाओं को बलपूर्वक व्यर्थ कर डालता है।६७-६८। अब तेरे पुण्यके प्रभावसे वह देवोंका राजा तेरे ही गर्भ | चरित्र से. जन्म लेगा। वह शंबुकुमार नामका विख्यात और जगद्वन्ध पुत्र होगा।६९। ऐसा कहकर और सन्तुष्ट करके श्रीकृष्णजीने जांबुवतीको जल्द ही उसके महलोंको भेज दी। वे इस भयसे व्याकुल हो रहे थे कि यदि इस समय सत्यभामा आ जावेगी तो कठिनाई होगी।७०। उधर प्रमोदको धारण करती हुई सत्यभामाने बड़े घमंडसे स्नान मज्जन आदि करके अपना शृङ्गार किया। शेखर आदि आभूषणोंसे अपनेको यथाशक्ति विभूषित किया, और सुन्दर पालकीमें बैठकर वह बहुतसे नौकर चाकरोंके साथ बनकी ओर चली ७१-७२। आगे चलकर उसे मार्गमें ही जाम्बुवती पाती हुई मिल गई।७३॥ सत्यभामाने अपने सेवकोंसे पूछा कि यह पालकीमें आरूढ़ हुई मेरे आगेसे कौन आ रही है ? उन्होंने उत्तर दिया कि, जांबुवती महारानी हैं । सत्यभामाने कहा, अरे यह विना नामकी कहां गई थी ? ७४-७५। फिर जाम्बुवतीसे कहा, हे पापिनी ! मेरी बांयी तरफसे जा ! उसने उत्तर दिया, हे घमंडिनी ! जब भरे हुयेको रीता हुआ साम्हने मिलता है, तब जो रीता होता है वह एक ओरको हट जाता है, वह अपने स्थान ही पर रहता है । तात्पर्य यह है कि, तू खाली आई है सो एक मोरको तू जा, मैं नहीं हहँगी, मैं भरी हुई हूँ ७६-७७॥ व्यर्थ समय खोनेके भयसे सत्यभामाने अधिक विवाद नहीं बढ़ाया। जाम्बुवतीको छोड़कर वह अपने पति के समीप रवाना होगई। जिस समय श्रीकृष्णजी रतिगृहमें बैठे हुये बाट देख रहे थे, उसी समय सत्यभामा बहुतसे नौकर चाकरोंके साथ पहुंच गई ।७८-७९। सो वह भी फूलोंकी दिव्य शय्यापर अपने मनोहर वचनालापसे, रतिकूजनसे, मणियोंके श्राभूषणोंके मधुर २ शब्दोंसे, कामविकार, युक्त सी सी शब्दसे, और थकावटकी श्वाससे, पतिको रिझाती हुई इन्द्र और इन्द्राणीके समान संभोग Jain Educat international Of Private & Personal Use Only www. library.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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