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________________ - प्राम्न २८ - धर्मकी सेवा करो ।२२३॥ इति श्रीसोमकीर्ति आचार्यकृत प्रद्युम्न चरित्र संस्कृतप्रन्थके नवीन हिन्दीभाषानुवादमें प्रद्युम्नका युद्ध, स्वजनोंका मिलाप, तथा विवाहोत्सबके वर्णनवाला ग्यारहवां सर्ग समाप्त हुआ। द्वादशमः सर्गः। प्रद्युम्नकुमार द्वारिकानगरीमें सुखसागरमें निमग्न हो रहे थे। ऐसा पूर्वमें कहा जा चुका है। अब उसके अनन्तर कीर्तिशाली शम्बुकुमारका दिव्य चरित्र वर्णन करते हैं-।१।। प्रद्युम्नकुमारका पूर्व भवका छोटा भाई कैटभ सोलहवें स्वर्गमें इन्द्र हुआ था। उसकी अनेक देव सेवा करते थे। एक दिन निर्मल विमानमें बैठे हुए उस महामतिको ऐसी मति हुई कि, जिनेश्वर भगवानकी वन्दना करना चाहिये ।२-३। इसप्रकारके शुभभावोंके वशवर्ती होकर बड़ी भारी भक्तिसे सुमेरुपर्वतकी पूर्व दिशामें जो विदेह क्षेत्र है, उसकी पुण्डरीकिनी नामक प्रसिद्ध नगरीमें गया। उस नगरीको पद्मनाभि नामके राजा पालन करते थे। वहां जाकर उसने श्रीजिनेन्द्रदेवके चरण कमलोंको भक्तिपूर्वक नमस्कार किया और उनके कहे हुए दुःखके नाश करनेवाले धर्मका स्वरूप सुना ४-६। इसके पश्चात् उस इन्द्रने अवसर पाकर और फिर नमस्कार करके अपने पूर्वभवोंका वृत्तान्त पूछा कि, हे विश्वनाथ ! हे जगत्पालक ! हे विश्ववल्लभ ! और हे गुणाकर ! कृपाकरके मेरे भवान्तरोंका चरित्र कहिये ७-८। यह सुनकर जिनेन्द्रभगवानने कहा, हे देवेन्द्र ! सुनो, तुम्हारे पूर्वभवोंका वर्णन संक्षेप से करते हैं। निदान भगवानने ब्राह्मणके भवसे लेकर इन्द्रके भवतकका सब वृतान्त कहा, जिसप्रकार कि पूर्वमें नारदजीसे कहा था ।९-१०॥ अपने पूर्वभवका वर्णन सुनकर वह देवोंका स्वामी बोला, हे जिनराज ! यह बतलाइये कि, मेरे भाई मधुका जीव कहां है ? जिन भगवानने कहा कि, इससमय वह द्वारिकानगरीमें श्रीकृष्णनारायणका Jain Educatinternational 13 For Private & Personal Use Only www.helibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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