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________________ चरित्र २८२ जिस समय यहांपर यह मेल मिलाप हो रहा था, उसी समय भानुकुमार सेनामेंसे निकलकर शीघ्र ही अपने घर गया और मातासे प्रद्युम्नकुमारका सब चरित्र कहने लगा ।२८। जब तक भानु कुमारने प्रद्युम्नका आगमन वृतांत कहा तब तक इन दोनोंके और जो नौकर चाकर तथा सहायक लोग थे वे भी सब सुननेके लिये आ गये । अपने बगीचेका, वनका, रथका, वापिकाका और फूलोंके ढेरका सत्यानाश करना तथा उदधिकुमारीका हरण करना सुनकर सत्यभामा अपने पुत्रके सहित अतिशय दुःखित हुई। उसके दुःखका वर्णन केवलीके बिना और कौन कर सकता है ।२६-३१।। वहां प्रेमपूरित श्रीकृष्णजी प्रद्युम्नकुमारसे बोले, बेटा ! अब तुम अपनी माताको यहां ले आरो। यह सुनकर प्रद्युम्नकुमार नीचेको दृष्टि करके कुछ सोचने लगे। उत्तर न पाकर पिताने फिर कहा कि तुम अपनी माताको क्यों नहीं लाते हो, नीचा सिर करके क्या सोचते हो ? तब नारदजी बोले, पृथ्वीमें अपनी अपनी स्त्री सबको प्यारी होती है, तुमने इसप्रकारसे क्यों नहीं कहा कि अपनी माता और स्त्रीको ले प्रायो। यह इसीलिये नीचेको दृष्टि करके सोचता होगा कि अकेली माताको कैसे ले पाऊँ और स्त्रीको लानेकी पिता आज्ञा नहीं देते हैं ।३२.३६। यह सुनकर श्रीकृष्णजी बोले, महाराज ! इसे बहु कहांसे प्राप्त हो गई ? मुझे तो उसके विषय में कुछ ज्ञान भी नहीं है। नारदजी कहने लगे, हे जनार्दन ! दुर्योधनने अपनी जो उदधिकुमारी नामकी पुत्री भानुकुमारके साथ विवाह करनेके लिये भेजी थी, उसे इसने भीलका वेष धारण करके और कौरवोंको जीतकर हरण कर ली थी वह इस समय विमानमें रुक्मिणीके साथ बैठी है ।३७-३९। यह सुनकर श्रीकृष्णजी सन्तुष्ट हुए और प्रद्युम्नसे बोले, वत्स ! जल्द जागो और अपनी माता तथा बहूको ले आओ।४०। पिताकी आज्ञानुसार कुमारने विमानको जल्द धरतीपर उतार लिया। उसमें उसकी माता और भार्या दोनों बैठी हुई थीं।४१। उस विमानको देखकर सबके सब यादव बहुत प्रसन्न हुए। क्योंकि वह एक अपूर्व Jain Education international For Privale & Personal Use Only www.jarelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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