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________________ जीका धनुष तोड़ डाला । इससे क्रोधित होकर उन्होंने जब तक दूसरा धनुष धारण किया और बाण चलानेका उद्योग किया, तब तक प्रद्युम्न उस धनुषको भी नष्ट करके बोला, आपने ऐसी अच्छी धनुषविद्या की चतुराई कहांसे पाई ? पृथ्वीमें जितने यदुवंशी भोजवंशी तथा पांडव आदि शूरवीर प्रसिद्ध हैं, आप तो उन सबके स्वामी और शस्त्रविद्याके पण्डित हैं ! इस युद्धकार्य में आपका धनुर्धरपना देख लिया गया, जो आप अपने धनुषकी भी रक्षा नहीं कर सके ! । ५५-५६ । जो राजाका वेश धारण करता है और ग्राम करना नहीं जानता है, वह स्वेच्छाचारी होकर कैसे जोता रह सकता है ? । ६० । अथवा तुम्हें अपने मरे हुए बन्धुओं से क्या प्रयोजन है ? और भार्याका भी क्या करोगे ? मेरे आगेसे जीते हुए चले जाओ, और अपने घर जाकर खूब सुख भोगो ६१ । जब प्रद्युम्न कुमारने इस प्रकारकी हँसीकी बातोंसे नारायणकी खूब ताड़ना की, तब वे भी तीसरा धनुष लेकर प्रद्युम्नपर मर्मस्थलोंको छेद डालने वाले अतिशय तीखे वाण चलाने लगे, जिनके मारे मायावी प्रद्युम्नकी सारी सेना छिन्न भिन्न होई । ६२-६३। अबकी बार उन्होंने कामकुमारका छत्र गिरा दिया, ध्वजा गिरा दी, सारथीको धा कर दिया, और घोड़ेको तथा परिजनोंको धराशायी कर दिया । ६४ | यह देख प्रद्युम्नकुमार जल्द ही दूसरे रथ पर चढ़ आया और उसने तत्काल ही अपने पिता को भी अपने समान कर दिया. अर्थात् उनके छत्र, धुजा, सारथी तथा घोड़ेको भी गिरा, रथरहित कर दिया । ठीक ही है, मायाके बलसे क्या नहीं हो सकता है ? । ६५ । तब यदुवंश शिरोमणि श्रीकृष्णजीने भी दूसरे दिव्य रथपर सवार होकर और क्रोधसे अपनी उत्कृष्ट विद्याको बुलाकर अग्निबाण चलाया । सो प्रलयकालकी ग्नि के समान उस देवोपनीत बाणने कामदेवकी सेनाको चारों ओर से घेरकर जलाना शुरू कर दिया। वह न कहीं तो अपनी दहन शक्तिसे धांय धांय करने लगी, कहीं फक फक करती हुई बड़ े २ फुलिंगे उड़ाकर दिशाओंको आच्छादित करने लगी। उस स्फुरायमान अग्निकी दीप्ति Jain Educan International O For Private & Personal Use Only प्रद्यम्न २७७ चरित्र www.janelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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