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प्रथम्न
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मेरे पुत्र के आगमन के सूचक हैं, परन्तु पुत्र नहीं दिखलाई देता है, इसका क्या कारण है ? । ५२५३ । मेरे शरीर में रोंगटे खड़े हो रहे हैं; मन में प्रसन्नता हो रही है, स्तनोंसे दूध करता है और दिशायें निर्मल दिख रही हैं परन्तु मेरा पुत्र नहीं दिखता है । कहीं यह ब्रह्मचारी ही मेरा पुत्र न हो । यदि यह निन्दित और कुत्सितरूपवाला ही मेरा पुत्र हुआ, तो सत्यभामा को मैं अपना मुँह कैसे दिखलाॐगी ? वह बुरे ग्राशय की धारण करनेवाली घमंडिनी अवश्य ही मेरी हँसी करेगी । ५४-५६ । मैं बड़ी ही हूँ | मेरा बड़ा भारी अपमान होगा। इस प्रकार चिन्ता करते २ रुक्मिणीको एक दूसरी चिन्ता यह हुई कि मेरी कूंख में श्रीकृष्णनारायणका पुत्र ऐसा कैसे हो सकता है ? क्योंकि बीज तो क्षेत्र के सम्बन्धसे अच्छा बुरा होता है । अर्थात् बुरे खेत में पड़कर बीज बुरा हो जाता है, और अच्छे खेत में पड़कर अच्छा होता है ।५७-५८ । अतएव मेरे गर्भ से जिसकी उत्पत्ति हुई, वह पुत्र तो बलवान, रूपवान, विद्यावान, गुणी, कीर्तिवान, प्रसिद्ध और श्रेष्ठ होना चाहिये । । ५६ । अथवा क्षेत्र की प्रमाणताका भी क्या निश्चय हो सकता है ? अर्थात् यह भी तो निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि अच्छे खेत से अच्छा ही फल होता है । जीवधारी पुण्य और पापके प्रभावसे रूपवान तथा कुरूप होते हैं । ६० । यदि प्राणियोंके रूप कुरूप होने में क्षेत्रकी ही प्रमाणता हो तो भोगभूमिके उत्तम क्षेत्र में हरिण, ऊँट, सिंह, हाथी आदि जानवर क्यों उत्पन्न होते हैं । ६१ । अथवा मैं यह विकल्प ही क्यों कर रही हूँ ? पहले मैंने नारदजी के मुँह से सुना था कि मेघकूट नगर में विद्याधरके यहां तेरा पुत्र वृद्धिको प्राप्त हो रहा है । ६२ । वह सम्पूर्ण विद्याओं का कलाका तथा विद्याधरोंका प्रभु होगा, इसमें संशय नहीं है । क्या आश्चर्य है कि वह ही विद्या के प्रभावसे मनोहर माया करके मेरे चित्तकी परीक्षा करनेके लिये यहां आया हो । ६३ ६४॥ परन्तु सोलह लाभोंको प्राप्त करनेवाला, दो विद्याओं से विभूषित और शत्रुओं का जीतनेवाला वह यह
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