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________________ चरित्र % से अत्यन्त सुन्दर था, नेत्र काले सफेद लाल और बड़े बड़े थे, चन्द्रमाके ममान सौम्य मुख था, शंखके प्रगना समान मनोहर कंठ था, सुमेरुकी भीतके समान वक्षःस्थल था, सिंहके समान कमर थी, हाथीके समान १८१|| चाल थी, तपाये हुए सोनेके समान सुन्दर शरीर था । इस अनेक उपमा समूहसे जो संयुक्त था, ऐसे गुणोंवाले उस प्रद्युम्न के रूपको देखकर कामकी प्ररी हुई कनकमाला मर्मका भेद करने वाले कामदेवके वाणसे बिद्ध होकर ऐसी दीनमुख हो गई, जैसे तुषार लगा हुआ कमल हो जाता है ।३१३-३१९॥ विरहकी आगसे उसका शरीर संतप्त होने लगा। दुःखके मारे वह अपने हाथ पर कपाल रखकर चिंता करने लगी।२०। विरहसे आर्द्रित होकर वह नयनोंसे आंसू बहाने लगी और विचारने लगी, हाय ! मैं क्या करूँ ? कहां जाऊँ । क्या पूछ् और क्या कहूँ ? ।२। लावण्यसे भरा हुअा मेरा यह नवीन यौवन, मेरा रूप, मेरी कांति और मेरे गुण, धैर्य, विभव, कला आदि तब ही सफल होंगे, जब मैं इस सर्व विद्याओंसे युक्त और सुन्दर कुमारका सेवन करूँगी। अन्यथा ये सब विफल हैं । इनका होना न होना बराबर है ।२२.२३। जिसने इसके मुख कमलके मधुर मधुका पान न किया और अपनी प्रांखोंसे इसके मुख पंकजको नहीं देखा, प्रणयसे कुपित होकर कमलसे इसे नहीं मारा, प्रेमसे इसका आलिंगन नहीं किया, तिरछे कटाक्षोंसे इसको नहीं देखा और सुरति क्रीड़ाके समय किंकिणीका मनोहर शब्द न किया, उस स्त्रीके विफल जीवन से क्या ? अर्थात् इसको पाये बिना कोई भी स्त्री भाग्यशालिनी नहीं हो सकती है ।२४-२६। जब तक कनकमाला इन विचारोंमें उलझी रहो, तबतक प्रद्युम्नकुमार नमस्कार करके अपने महलको चला गया ।३२७। प्रद्युम्नके चले जानेपर कनकमाला दुःखी होती हुई सोचने लगी, हाय, मुझे यह क्या होगया है ? कामके वाणोंसे मेरा सारा शरीर घायल हो गया है। मुझसे उसकी विरहवेदना नहीं सही जाती है ।३२८। उस समय कनकमाला निर्लज्ज होकर नानाप्रकारकी विकार चेष्टायें करने लगी। बारंबार - HTRA Jain Educa international ve For Private & Personal Use Only www.jagelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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