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________________ चरिः - देकर बुलवाया और समस्त मण्डलीके समक्षमें प्रद्युम्नकुमारसे कहा, हे पुत्र ! मेरी बात ध्यान देकर सुन-जिस समय तू बनमें अपनी माताके गूढगर्भसे उत्पन्न हआ था. उसी समय मैंने तेरे शुभलक्षणों को देखकर तुझे प्रसन्नतासे युवराजपद प्रदान कर दिया था ।१६-१७। परन्तु यह बात सबको प्रगट नहीं है। इसकारण अब मैं सबकी साक्षोसे तुझे युवराजके पदपर स्थापित करता हूँ। सो तू इसे हर्षसे स्वीकार कर ।१८। तब प्रद्युम्नकुमारने पिताकी आज्ञानुसार बड़ी प्रसन्नतासे युवराजपद अङ्गीकार किया। क्योंकि राज्य पाना किसे प्रिय नहीं होता।१६। इस महोत्सवकी खुशीमें राजा कालसंवर ने याचकोंको बहुतसा दान दिया म्वजनों मित्रवों के तथा अन्यान्य लोगोंके सब मनोरथ पूरे किये ।२०। इससे प्रद्युम्नकुमारकी कीर्ति पृथ्वीमें फैल गई। और वह नगर तो प्रद्युम्नकी कथासे ही सब ओरसे परिपूर्ण हो गया ।२१॥ रानी कनकभालाके सिवाय, राजाकालसंवरकी अन्य पांचौ रानिये और थीं, जिनसे पांचसो विद्या विशारद पुत्र हुए थे।२२। वे नित्य प्रातःकाल उठकर अपनी २ माताको विनयमहित प्रणाम (पावाँढोक) करते थे।२३। एकदिन माताओंने अपने पुत्रोंसे क्रोधित होकर कहा.हे शक्तिहीन कुपुत्रो! तुम हए जैसे न हुए। तुम्हारी उत्पत्तिसे क्या लाभ हुआ ? जब तुम्हारे देखते २ जिसकी जातिपांतिका कुछ पता नहीं है, उम पापी दुष्टात्माने तुम्हारा राज्य अर्थात् युवराजपद ले लिया और तुम कोरे रह गये, तब तुम्हारे जीनेसे क्या ? इससे तो मरे ही अच्छे थे।२४-२५। तुम सबको चाहिये कि, एकत्र होकर उसे जितनी जल्दी हो सके धोखेसे मार डालो। क्योंकि इसके जीते जी तुम्हारा कुछ भी नहीं है, अर्थात् तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा ।२६। दुष्ट पुत्रोंने अपनी माताओंके अभिप्रायको समझ लिया और सबने मिलकर यह निश्चय कर लिया कि, बने जिस उपायसे प्रद्युम्न के प्राण लेना चाहिये ।२७। उन्होंने तत्काल अपनी माताओंसे कहा कि, जैसी आपकी आज्ञा है, वैसा ही हम शीघ्र प्रयत्न करेंगे और Jain Educa interational For Privale & Personal Use Only www.jalhalbrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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