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॥ १७ ॥ उसमें जगविख्यात मगध नामका एक देश है, जो अनेक तरहकी वापिका (बावड़ी) कुए और सरोवरोंसे शोभायमान है ॥१८॥ उस मगधदेशमें एक राजगृह नामका नगर है, जो धरातलपर | चरित्र विख्यात है और जिनमन्दिरोंके द्वारा स्वर्गपुरीके समान सुन्दर है ॥१६॥ उस नगरमें श्रोणिक नामका राजा राज्य करता था जो जगद्विख्यात, शत्रु ओंका जीतनेवाला, निर्मल चित्तका धारक, विवेकी, दुष्टोंका निग्रह करनेवाला, सत्पुरुषोंकी रक्षामें दत्तचित्त, श्रावकोंके प्राचारका पालनेवाला और सम्यकत्वसे शोभायमान था॥२०-२१॥ उस राजाकी चेलना नामकी एक रानी थी, जो सरल स्वभावको धारक अपने रूपकी सम्पत्तिसे देवांगनात्रों के भी रूपको जीतनेवाली, पापसे भयभीत, अपने गुणोंसे संसारमें विख्यात, गुणोंकी खानि, सम्यक्त्ववान, श्रावकाचारके धारणसे अतिशय निर्मल, दोनों कुलोंको विशुद्ध बनानेवाली पतिके अत्यन्त स्नेहके भारसे मन्द गमन करनेवाली, जिनमार्गमें निपुण, और पतिव्रता स्त्रियों के गुणोंको धारण करनेवाली थी॥२२-२४॥ उसके साथ राजा श्रीणिकने रात्रिदिवस अनेक प्रकारके सुख भोगते और आनन्द सागरमें मग्न रहते हुए समय व्यतीत कर दिया, कुछ जान न पड़ा ॥ २५ ॥
एक दिन अनेक उद्यानोंवाले विपुलाचल पर्वतपर श्रीमहावीरस्वामीका समवशरण अाया, जिनके चरणारविंद गणधरादि मुनीन्द्रोंसे पूजित थे, और जिनकी परमौदारिक शरीरकी शोभा अद्वितीय थी ॥ २६-२७ ॥ उस समय श्रीजिनेन्द्रके प्रभावसे वह बन फल फूलोंसे परिपूर्ण हो गया और मृगव्याघादिकका स्वाभाविक वैर भी दूर हो गया। तब उपवनको विशेष विभवसहित देखकर बनका रक्षक माली चकित हो गया, और उसके कारणका विचार करता हुआ, चारों ओर भ्रमण करने लगा ॥ २८-२६ ॥ घूमते २ उसे समवशरण दिखाई दिया, जिसके दर्शनमात्रसे उसका चित्त प्रफुल्लित हो गया ॥३०॥
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