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श्रष्टमभक्त
अष्टांग
महानिमित्त
- लगातार आठ समय ( वक्त) तक श्राहार (भोजन), पानी, खाद्य और स्वाद्य पदार्थों का त्याग, अथवा पानी रहित आहार, खाद्य और स्वाद्य का त्याग, किंवा ३ दिन का उपवास (तेला ) ।
आदानभाण्डमात्र निक्षेपणा समिति - देखिये, 'समिति' ।
श्राभोगिक
श्रार्त्तध्यान
१. अंग विद्या, २. स्वप्न विद्या, ३. स्वर विद्या, ४. भूविद्या, ५. लक्षण विद्या, ६. रेखा विज्ञान, ७. आकाश विज्ञान, और ८ नक्षत्र विज्ञान । उपरोक्त आठ निमित्त-विद्याओं द्वारा शुभाशुभ, लाभ-लाभ ज्ञान को प्रदर्शित करने वाला शास्त्र ।
श्रास्वादन
ईर्यासमिति
उत्स्वेदिम
आयाम
आयुष्य कर्म – देखिए, 'कर्म' ।
द्वारा
- अवधिज्ञान-प्राप्ति से लेकर केवलज्ञान उत्पन्न होने तक स्थिर रहने वाला ज्ञान ।
- चावल आदि का धोवन, श्रोसामण ।
- कालचक्र जिस प्रकार रथ, गाड़ी आदि के चक्के लगे होते हैं वैसे ही काल रूपी रथ के भी आरा (चक्र) होते हैं। बारह ग्रारों का एक कालचक्र होता है जो २० कोटा- कोटि सागरोपम का होता है | कालचक्र के छः आारा अवसर्पिणी काल तथा छः प्रारा उत्सर्पिणी काल कहलाता है। - प्रात्तं अर्थात् अप्रिय एवं प्रतिकूल संयोगों में पीड़ा से उत्पन्न होने वाला ध्यान अर्थात् विकल्प, कुविकल्पादि विचार |
- करणमात्र को भी चखना, स्वाद लेना ।
– देखिए, 'समिति' ।
- घाटा आदि का धोवन ।
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