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कल्पसूत्र ३४३
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उनका शरीर जल रहित हो गया है, आर्द्रता रहित हो गया है, तब उन्हें अशन, पान, खादिम और स्वादिम पदार्थों का भक्षण करना कल्पता है।
२६५. यहां वर्षावास में रहे हुए श्रमण और श्रमणी को ये आठ सूक्ष्म अवश्य जानने चाहिए। प्रत्येक छद्मस्थ साधु और साध्वी को ये आठ सूक्ष्म पुनः पुनः जानने चाहिए, देखने चाहिए और पुनः पुनः प्रतिलेखना करनी चाहिये । ये आठ सूक्ष्म इस प्रकार हैं :१. प्रारण सूक्ष्म, २. पनक सूक्ष्म, ३. बीज सूक्ष्म, ४. हरित सूक्ष्म, ५. पुष्प सूक्ष्म, ६. अण्ड सूक्ष्म ७. लयन सूक्ष्म और स्नेह सूक्ष्म ।
२६६. प्रश्न - वह प्राणसूक्ष्म क्या है ? उत्तर- प्राणसूक्ष्म (अत्यन्त बारीक जो साधारण नेत्रों से न देखा जाए) पांच प्रकार का कहा गया है। यथा१. कृष्ण रंग के सूक्ष्म प्रारण, २. नीले रंग के सूक्ष्म प्राण, ३. लाल रंग के सूक्ष्म प्राण, ४. पीले रंग के सूक्ष्म प्राण और श्वेत रंग के सूक्ष्म प्राणमनुरी (जन्तु) कुन्थुश्रा नामक सूक्ष्म प्राणी है। वह कुन्थुम्रा यदि स्थिर रहता है, गमनादि क्रिया नहीं करता है, तो छद्मस्थ साधु और साध्वी की दृष्टि में सहसा नहीं प्राता है। यदि वह अस्थिर और चलायमान हो तो छदमस्थ
265. During paryuşana, monks and nuns should be intently aware of the following eight kinds of minute beings and remain constantly alert in detecting them. These beings are living beings, fungi, seeds, sprouts, flowers, eggs, habitats and moisture particles.
266. What are minute living beings ?
They are said to be of five varieties: black, blue, red, yellow and white. There is an extremely minute being called Anuddhari which, when it remains still and unmoving, cannot be readily perceived by a monk or a nun who is still in a state of relative ignorance.
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