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कल्पसूत्र १८८
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च बाहिरियं नीसाए चोट्स अंतरावासे वासावसं उवागए । छ मिहिलिया, दो भद्दियाए, एगं आलभियाए, एगं सावत्थीए, [एगं पणीयभूमीए, ] एगं पावाए मज्झिमाए हत्थिपालगस्स रण्णो रज्जूसभाए अपच्छिम अंतरावासं वासावासं उवागए ॥१२२॥
तत्थ णं जे से पावाए मज्झिमाए हत्थिपालगस्स रण्णो रज्जूसहाए अपच्छिमे अंतरावासे वासावासं उवागए, तस्स णं अंतरा - वासस्स जे से वासाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे कत्तियबहुले तस्स णं कत्तियबहुलस्स पन्नरसीपक्खेणं जा सा चरमा रयणी तं रर्याणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगए विइक्कंते समुज्जाए छिन्नजातिजरामरणबंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्ख पहीणे, चंदे नाम से दुच्चे संवच्छरे पीइवद्धणे मासे नंदिवद्धणे पक्खे सुव्वयग्गी
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