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________________ समझना चाहिए," कहा है । ऋषभदेव के प्रसंग में पुरुषों की ७२कलाओं, महिलाओं के ६४ गुण, और शिल्पशत का विशिष्ट उल्लेख है। २. स्थविरावली:-प्रारम्भ में महावीर के | गण और ११ गणधरों के सम्बन्ध में ऊहापोह करते हुए, महावीर की परम्परा आर्य सुधर्म से स्वीकार की गई है। प्रार्य सुधर्म, जम्बू, प्रभव, शय्यम्भव, यशोभद्र का उल्लेख कर, संक्षिप्त वाचना द्वारा यशोभद्र से लेकर प्रार्य वज्र के शिष्यों तक का उल्लेख किया है । पश्चात् विस्तृत वाचना द्वारा आर्य यशोभद्र से लेकर आर्य फल्गुमित्र तक का वर्णन किया गया है । इस वर्णन में प्रमुख-प्रमुख पट्टधरों, शिष्यों, उनसे निःसृत कुल, गण और शाखामों का उल्लेख किया गया है । अन्त की गाथाओं में आर्य फल्गुमित्र से लेकर देवद्धिगणि क्षमाश्रमण तक को वन्दना की गई है। ३. समाचारी:- वर्षावास-चातुर्मास में रहे हुए क्षमाप्रधान साधु और साध्वियों को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए, किस प्रकार का प्राचार-व्यवहार, मर्यादा-पालन करना चाहिए, कैसे स्थान पर रहना चाहिए, किस प्रकार का भोजन ग्राह्य है, कहां तक भ्रमण कर सकता है आदि विविध प्राचारों-नियमों का उत्सर्ग एवं अपवाद के साथ २८ समाचारियों में वर्णन किया गया है। ४. प्रमाण :- नियुक्तिकार प्राचार्य भद्रबाहु विरचित कल्पसूत्र नियुक्ति गाथा ६२ "पुरिमचरिमाण कप्पो, मंगलं वद्धमारण-तित्थंमि । इह परिकहिया जिणगणहराई थेरावलि चरित्तं ।" से स्पष्ट है कि प्रारम्भ के दोनों अधिकार जिन-चरित्र और स्थविरावली पर्युषण-कल्प नामक पाठवें अध्ययन के ही अंश हैं, प्रक्षिप्तांश नहीं। इन्द्र, गर्भापहार, अट्टणशाला, जन्म प्रीतिदान, दीक्षा आदि विषयक सूत्र एवं वर्णक चूणिकार द्वारा चूरिण में स्वीकृत होने से प्रक्षिप्तांश नहीं हैं। चौदह स्वप्न सम्बन्धी वर्णक मौलिक हैं या प्रक्षिप्त, यह अवश्य ही शंकास्पद होने से विचारणीय है।' ' मुनि पुण्यविजयः कल्पसूत्र, प्रास्ताविक पृ०६-१० Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600010
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publication Year1984
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationManuscript, Canon, Literature, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size11 MB
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