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से भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी तक आठ दिवसीय पर्व को पर्युषणा पर्व कहते हैं । इन आठ दिनों में चतुर्विध संघ (साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका) सम्यक् प्रकार से इस पर्व की आराधना करता है और विधि एवं महोत्सव के साथ इस सूत्र का पारायण करता है ।।
शताब्दियों से इस पाठवें अध्ययन का अत्यधिक प्रचार-प्रसार होने के कारण सूत्र शब्द इससे सम्बद्ध हो गया और यह अध्ययन पर्युषणा-कल्पसूत्र के नाम से कहलाते हुए क्रमशः कल्पसूत्र के नाम से सर्वाधिक प्रसिद्ध हो गया । यही कारण है कि पूर्वाचार्यों ने कल्पसूत्र नामक स्वतन्त्र छेद सूत्र को इससे पृथक् सिद्ध करने के लिये बृहत् शब्द का प्रयोग कर उसे बृहत् कल्पसूत्र नाम प्रदान किया, जो कि आज भी प्रसिद्ध है।
१२१५ श्लोक परिमाण का ग्रन्थ होने से यह 'बारह सौ सूत्र' अवथा 'साढ़े बारह सौ सूत्र' के नाम से भी रूढ़ है, प्रसिद्ध है।
स्वरूप- यह सूत्र गद्यात्मक है। सूत्रांक संख्या २६१ है तथा अनुष्टुप् श्लोक परिमाण से पद्यसंख्या (ग्रन्थाग्रन्थ) १२१५ या १६ मानी गई है। इसमें तीन अधिकार (वाचनायें) हैं :- १. जिन चरित्र, २. स्थविरावली और ३. साधु समाचारी। तीनों अधिकारों की क्रमशः २००,२३,६८ सूत्रांक संख्या है। इन तीनों वाचनामों का संक्षिप्त सारांश इस प्रकार है :
१. जिन चरित्र :- इसमें पश्चानुपूर्वी से श्रमण भगवान् महावीर, पुरुषादानीय पार्श्वनाथ, अहंत अरिष्टनेमि (नेमिनाथ), २० तीर्थंकरों का अन्तरकाल (मध्यकाल) और कोशलिक अर्हत् ऋषभदेव के जीवन की प्रमुख घटनाओं का आलेखन है। सामान्यतया चारों तीर्थंकरों के पांचों कल्याणकों (च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण) का और उनके परिवार का तथा अन्तकृभूमि का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है । केवल महावीर के चरित्र में इसके अतिरिक्त निम्नांकित विषयों का विशदतम वर्णन प्राप्त है- इन्द्र, गर्भापहार, चौदह स्वप्न, अट्टणशाला, स्वप्नफल कथन, जन्मोत्सव, दीक्षोत्सव, चातुर्मास और निर्वाण । पार्श्व, नेमि, ऋषभदेव के सम्बन्ध में गर्भापहार की घटना को छोड़कर शेष वर्णनों के लिये सूत्रकार ने “महावीर चरित्र के समान ही
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