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52. On hearing Trisala's words, king Siddhartha was transported with joy. He reflected on the significance of the dreams in the light of his inborn wisdom and acquired knowledge. Then addressing Trisala with an alluringly sweet, gracious and measured speech, he said :
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५२. इसके पश्चात् वह सिद्धार्थ राजा त्रिशला क्षत्रियाणी के मुख से इस अर्थ-बात को सुनकर, समझकर, हर्षित और सन्तुष्ट चित्त वाला हुया, आनन्दित हुआ। मन में प्रीति उत्पन्न हुई। परम सौमनस्य - अत्यन्त पाह्लाद को प्राप्त हुआ। उसका हृदय हर्षविभोर हो उठा । मेघ की धारागों से पाहत सुरभित कदम्ब पुष्प की तरह उसके रोमकूप पुलकित हो उठे। वह उन स्वप्नों का अवग्रहण करता है । उन स्वप्नों का प्रवग्रहण कर वह फल का अनुसन्धान करता है। फल का अनुसन्धान कर वह अपने स्वाभाविक प्रज्ञासहित बद्धिविज्ञान द्वारा उनमें से प्रत्येक स्वप्न के विशिष्ट अर्थ-फल का निश्चय करता है। विशिष्ट अर्थ का निश्चय करके वह इस प्रकार की इष्ट यावत् मांगल्यकारी, मृदु, मधुर
और मंजूल वाणी का आलाप-संलाप करता-करता त्रिशला क्षत्रियाणी को इस प्रकार बोला : ५३. "हे देवानप्रिये ! तुमने उदार स्वप्न देखे हैं। हे देवानप्रिये! तुमने कल्याणकारी स्वप्न देखे हैं। हे देवानुप्रिये ! तुमने शिवरूप, धन्य-मंगलरूप, शोभाकारक, पारोग्यकारक, तुष्टिकारक, दीर्घायुकारक, कल्याणकारक, मंगलकारक
53. "Truly, O beloved of gods, you have seen bountiful dreams. You have seen dreams that are beatific and auspicious. They augur long life, well being and gracious prosperity. They
कल्पसूत्र
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