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कल्पसूत्र ও5
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पवर- रयण- परायंत कमलट्ठियं नयणभूसणकरं पभासमाणं सव्वओ चेव दीवयंतं सोमलच्छीनिभेलणं सव्वपावपरिवज्जियं सुभं भासुरं सिरिवरं सव्वोउय- सुरभि - कुसुम - आसत्त- मल्लदामं पेच्छइ सा रययपुण्णकलसं ८ ॥४२॥
पुणरवि रविकिरण-तरुण बोहिय सहस्तपत्त - सुरभितर-पिंजरजलं जलचर-पहकर - परिहत्थग-मच्छ - परिभुज्जमाण- जलसंचयं महंतं जलंतमिव कमल - कुवलय - उप्पल- तामरस- पुंडरीय - उरुसप्प - सिरिस मुदए ह रमणिज्जरूवसोभं पमुइयंततम भमरगण-मत्त महुकरिगणोक्करोलिभमाणकमलं ( २५० ) कायंबग-बग- बलाहग- चक्क - कलहंस-सारस
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