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into a deep Sleep, and having removed unholy particles, showered holiness upon them. Then hegently placed Bhagavan Mahavira in the womb of Trišală. He then removed the child that lay in Trišala's womb and carried it to the womb of Devānandā. 28. This accomplished, he returned as he had come with a dazzling speed and reported to Indra who was sitting on his throne in the celestial sphere, Sudharma.
वहां आता है। वहां पर आकर वह परिवार सहित । त्रिशला क्षत्रियाणी को अवस्वापिनी निद्रा में सुलाता है। अवस्वापिनी निद्रा में सुलाकर अशुभ पुद्गलों को दूर करता है । अशुभ पुद्गलों को दूर कर शुभ पुद्गलों को फैलाता है । सुगन्धित पुद्गलों को फैलाकर, श्रमण भगवान महावीर को किंचितमात्र भी कष्ट न हो इस प्रकार निर्बाधरूप से त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भरूप में स्थापित करता है तथा त्रिशला क्षत्रियाणी का जो गर्भ है, उसे जालन्धर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में गर्भरूप में स्थापित करता है। स्थापित कर वह हरिनगमेषी देव जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में वापिस चला गया। २८. (वह) उत्कृष्ट प्रकार की त्वरायुक्त, चपल, वेग के कारण प्रचण्ड, चातुर्य युक्त, विशिष्ट वेगवाली, उत्कट, शीघ्र दिव्य देवगति से तिरछे असंख्य द्वीप-समुद्रों के बीचों बीच होता हुआ, हजार-हजार योजन की वक्रगति से ऊपर की ओर चढ़ता-चढ़ता, जहां सौधर्म नामक कल्प में, सौधर्मावतंसक विमान में, शक्र नामक सिंहासन पर शक्र देवेन्द्र-देवराज
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