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सिरि-भगवंत-पुष्पदंत-भूदबलि-पणीदो
छक्खंडागमो . तस्स चउत्थे-वेयणाखंडे
२. वेदणाणियोगद्दारे १. वेयणणिक्खेवो
वेदणा ति । तत्थ इमाणि वेयणाए सोलस अणियोगद्दाराणि-णादव्वाणि भवंतिवेदणणिक्खेवे वेदणणयविभासणदाए वेदणणामविहाणे वेदणदव्वविहाणे वेदणखेत्तविहाणे वेदणकालविहाणे वेदणभावविहाणे वेदणपच्चयविहाणे वेदणसामित्तविहाणे वेदण-वेदणविहाणे वेदणगइविहाणे वेदणअंणतरविहाणे वेदणसण्णियासविहाणे वेयणपरिमाणविहाणे वेयणभागाभागविहाणे वेयणअप्पाबहुगे त्ति ॥१॥
___ अब वेदना अधिकार प्रकरण प्राप्त है। उसमें वेदनाके ये सोलह अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं- वेदनानिक्षेप वेदनानयविभाषणता, वेदनानामविधान, वेदनाद्रव्यविधान, वेदनाक्षेत्रविधान, वेदनाकालविधान, वेदनाभावविधान, वेदनाप्रत्ययविधान, वेदनास्वामित्व विधान, वेदना-वेदनाविधान, वेदनागतिविधान, वेदना-अनन्तरविधान, वेदनासान्निकर्षविधान, वेदनापरिमाणविधान, वेदनाभागाभागविधान और वेदनाअल्पबहुत्व ॥ १ ॥
१. वेदना शब्दके अनेक अर्थ हैं। उनमें कौनसा अर्थ यहां विवक्षित है, इसका उल्लेख वेदनानिक्षेप अनुयोगद्वारमें किया गया है। २. उपर्युक्त नामादि निक्षेपरूप व्यवहार किस किस नयकी अपेक्षासे होता है, इसका विवेचन वेदननयविभाषणता अनुयोगद्वारमें किया गया है। ३. जीवमें बन्ध, उदय और सत्त्व रूपसे जो पुद्गलस्कन्ध अवस्थित हैं उनके विषयमें किस किस नयका कहां कहां कैसा प्रयोग होता हैं; इसकी प्ररूपणा वेदनानामविधान अनुयोगद्वारमें की गई है। ४. अभव्यसिद्धिकोंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंसे अनन्तगुणे हीन जो पुद्गलस्कन्ध जीवसे सम्बन्ध होते हैं उनका नाम वेदनाद्रव्य है, वह वेदनारूप द्रव्य अनेक प्रकारका है, इसका विचार वेदना द्रव्यविधान अनुयोगद्वारमें किया गया है। ५. वेदनाद्रव्योंकी अवगाहना अंगुलके असंख्यातवें भागसे लेकर धनलोक प्रमाण तक होती है, इसका विवेचन वेदनाक्षेत्रविधान अनुयोगद्वारमें किया गया है । ६. वह वेदनाद्रव्य वेदनाके स्वरूपको न छोड़कर जघन्य और उत्कर्ष रूपसे कितने काल रहता है, इसकी प्ररूपणा वेदनाकालविधान अनुयोगद्वारमें की गई है। ७. वेदनाद्रव्यस्कन्धमें संख्यात, असंख्यात और अनन्तगुणे भावभेदोंका प्रतिषेध करके अनन्तानन्त भावभेदोंके सद्भावकी प्ररूपणा वेदनाभावविधान अनुयोगद्वारमें की गई है। ८. वेदनाप्रत्ययविधान अनुयोग
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