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________________ श्रीपञ्चव. ३ वयठ वणा ।। २७० ॥ Jain Education Inter तिण्णेव य पच्छागा रयहरणं चेव होइ मुहपोती। एसो दुबालसविहो उवही जिणकप्पियाणं तु ॥ ७७३ ॥ बारस विहोsवि एसो उक्कोस जिणाण न उण सद्देसिं। एसेव होइ निअमा पकप्पभासे जओ भणिअं ॥७७४॥ बिअतिअचक्कपणगं नवदसएक्कारसेव बारसगं । एए अट्ठ विअप्पा उवहिंमि उ होंति जिणकप्पे ॥७७५ ॥ रहरणं मुहपोती दुविहो कप्पेक्कत्त तिविहो उ । रयहरणं मुहपोत्ती दुकप्प एसो चउद्धा उ ॥ ७७६ ॥ तिण्णेव यं पच्छागा रयहरणं चेव होइ मुहपोती । पाणिपडिग्गहिआणं एसो उबही उ पंचविहो ॥ ७७७ ॥ पत्ताधारीणं पुण णवाइ भेया हवंति नायवा । पुत्तोव हिजोगो जिणाण जा बारकोसो ॥ ७७८ ॥ एए चैव दुबालस मत्तग अइरेग चोलपट्टो अ । एसो अ चोहसविहो उवही पुण थेरक पंमि ॥ ७७९ ॥ पत्तं पत्ताबंधी पायट्टवणं च पायकेसरिआ । पडलाइँ रत्ताणं गोच्छओ पायणिजोगो ॥ ७८० ॥ एए चैव उ तेरस अभिन्नरूवा हवंति विण्णेआ । उवहिविसेसा निअमा चोइसमे कमढए चैव ॥ ७८१ ॥ sriesinगपो अड्डोरुअ चलणिआ य बोद्धवा । अभितरवाहिणिअंसणी अ तह कंचुए चैव ॥ ७८२ ॥ ओकच्छिr वेकच्छिअ संघाडी चेव खंधकरणी अ । ओहोवहिम्मि एए अजाणं पण्णवीसं तु ॥ ७८३ ॥ सो पुण ससिं जिणाइआणं तिहा भवे उबही । उक्कोसगाइ भेओ पच्छित्ताईण कज्जम्मि ॥ ७८४ ॥ उकोसओ चउद्धा च छद्धा होइ मज्झिमो उवही । चउहा चेव जहण्णो जिणधेराणं तयं वोच्छं ॥ ७८५ ॥ तिन्नेव य पच्छागा पडिग्गहो चेव होइ उक्कोसो। गोच्छय पत्तगठवणं मुहणंतग केसरि जहण्णो ॥ ७८६ ॥ For Private & Personal Use Only उपकर णानि ।।। २७५ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600005
Book TitlePanchvastukgranth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size12 MB
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