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________________ ACCA R AAAAAAAAE% एसण गवेसणऽण्णेसणा य गहणं च होंति एगट्ठा । आहारम्मिह पगया तीऍ य दोसा इमे हुँति ॥ ७६१ ॥ संकि मक्खिअ णिक्खित्त पिहिअ साहरिअ दायगुम्मीसे । अपरिणय लित्त छड्डिअ एसणदोसा दस भवंति ॥ ७६२॥ कम्माइ संकिइ (संकइ) तयं मक्खिअमुदगाइणा उ जं जुतं । णिक्खित्तं सच्चित्ते पिहिरंतु फलाइणा थइ॥ ७६३ ॥ मत्तगगयं अजोग्गं पुढवाइसु छोटु देइ साहरि। दायग बालाईआ अजोग बीजाइ उम्मीसं ॥ ७६४॥ अपरिणयं दचं चिअ भावो वा दोण्ह दाण एगस्स । लित्तं वसाइणा छद्दिअंतु परिसाडणावंतं ।। ७६५॥ एवं बायालीसं गिहिसाहभयसमुम्भवा दोसा । पंच पुण मंडलीए णेआ संजोअणाईआ॥ ७६६ ॥ संजोअणा पमाणे इंगाले धूम कारणे चेव । उवगरणभत्तपाणे सवाहिरभंतरा पढमा ॥ ७६७॥ बत्तीसकवल माणं रागद्दोसेहिं धूमइंगालं । वेआवच्चाईआ कारणमविहिम्मि अइयारो॥ ७६८ ॥ दारं उवगरणंपि धरिजा जेण न रागस्स होइ उप्पत्ती। लोगम्मि अ परिवाओ विहिणा य पमाणजुत्तं तु ॥७६९॥ दुविहं उवहिपमाणं गणणपमाणं पमाणमाणं च । जिणमाइआण गणणापमाणमेअं सुए भणिअं॥ ७७०॥ जिणा बारसरूवाणि, थेरा चोद्दसरूविणो । अजाणं पन्नवीसं तु, अओ उडे उवग्गहो ॥ ७७१ ॥ पत्तं पत्ताबंधो पायढवणं च पायकेसरिआ । पडलाइ रयत्तार्ण च गोच्छओ पायणिजोगो ॥७७२॥ -SCR-O-CACASCA www.anibrary and Jain Education in For Private &Personal use Only,
SR No.600005
Book TitlePanchvastukgranth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size12 MB
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