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पडला. रयत्ताणं पत्ताबंधो जिणाण रयहरणं । मझो पगमत्तगसहि ओ एसेव थेराणं ॥ ७८७ ॥ उक्कोसो अट्टविहो मज्झिमओ होइ तेरसविहो उ । अवरो चउविहो खलु अजाणं होइ विष्णेओ ॥ ७८८॥ तिपणेय य पच्छागा अभितरवाहिणिवसणी चेव । संघाडि खंधकरणी पत्तं उक्कोस उवहिम्मि ॥ ७८९ ॥ पत्ताबंधो पडला रयहरणं भत्त कमढ रयताणं । उग्गहपट्टो अड्डोरु चलणि उक्कच्छिवेकच्छी ।। ७९० ॥ सुहपोती केसरिआ पत्तढवणं च गोच्छओ चेव । एसो चउधिहो खलु अजाण जहण्णओ उवही ॥७९१ ॥ तिन्नि विहत्थी परंगुलं च माणस्स मज्झिम पमाणं । एत्तो हीण जहन्नं अइरेगयरंतु उधोसं ॥ ७९२ ॥ इणमन्नं तु पमाणं शिगाहाराओं होइ निष्फलं । कालप्पमाणसिद्धं उअरपमाणेण य वयंति ॥ ७९३ ।। उकोसतिसामासे दुगाउअडाणमागओ साह! चउरंगुलूग भरिअंजं पजत्तं तु साहुस्त ॥ ७१४ ॥ एवं(थ) व पमाण सविसेसयरं अणुग्गहपवत्तं । कंतारे दुन्भिवखे रोहगमाईसु भइअचं ॥ ७९५ ॥ बेआवच्चकरो या गंदीभाणं धरे उवग्गहि। सो खलु तस्स विसेसो पमाणजुत्तं तु सेसाणं ॥ ७९६ ॥ दिजाहि भाणपूरं तु रिद्धिमं कोइ रोहमाईसु । ताहियं तस्सुवओगो सेसं कालं पडिक्कुटो ।। ७२७ ॥ पत्ताबंधपमाणं भाणपमाणेण होइ कायस्वं । जह गंठिम्मि कयम्मी कोणा चतुरंगुला होति ॥ ७९८॥ पत्तगठवणं तह गोच्छओ अ पायपडिलेहणी चेव । तिण्हपि ऊ पमाणं विहत्थि चउरंगुलं चेव ॥ ७९९ ॥ रयमाइरक्खणहा पत्ताबंधो अपराठवणं च । होइ पमजणहेउं तु गोच्छ ओ भाणवत्थाणं ॥ ८००॥
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पञ्चय.४६
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