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श्रीपञ्चव. २ प्रतिदिनक्रिया
प्रतिक्रमण| विधिः
॥२५९॥
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विअडणपच्चक्खाणे सुए अ रयणाहिआवि उ कारति । मज्झिल्ले ण करेंती सो चेव य तेसि पकरेह ॥४७७॥ खामित्तु तओ एवं करिति सव्वेवि नवरमणवजं । रेसिम्मि दुरालोइअ दुप्पडिकंतस्स उस्सग्गं ॥ ४७८॥ जीवो पमायबहुलो तब्भावणभाविओ अ संसारे। तत्थवि संभाविजइ सुहमो सो तेण उस्सग्गो ॥४७९॥ चोएइ हंदि एवं उस्सग्गंमिवि स होइ अणवत्था । भण्णइ तज्जयकरणे का अणवत्था जिए तम्मि?॥४८०॥ तत्थवि अ जो तओवि हु जीअइ तेणेव ण य सया करणं । सबोवि साहुजोगोखलु तप्पच्चणीओत्ति ॥४८॥
एस चरित्तुस्सग्गो दंसणसुद्धीऍ तइअओ होइ।
सुअनाणस्स चउत्थो सिद्धाण थुई य किइकम्मं ॥ ४८२ ॥ ॥ सूचागाहा ॥ सामाइअपुत्वगं तं करिति चारित्तसोहणनिमित्तं । पिअधम्मवजभीरू पण्णासुस्सासगपमाणं ॥ ४८३ ॥ ऊसारेऊण विहिणा सुद्धचरित्ता थयं पकडित्ता । कटुंति तओ चेइअबंदणदंडं तउस्सग्गं ॥ ४८४ ॥ दसणसुद्धिनिमित्तं करेंति पणवीसगं पमाणेणं । उस्सारिऊण विहिणा कडेति सुअत्थयं ताहे ॥ ४८५॥ सुअनाणस्सुस्सग्गं करिति पणवीसगं पमाणेणं । सुत्तइयारविसोहणनिमित्तमह पारि विहिणा ।। ४८६॥ चरणं सारो दंसणनाणा अंगं तु तस्स निच्छयओ। सारम्मि अ जइअवं सुद्धी पच्छाणुपुबीए ॥ ४८७॥ सुद्धसयलाइआरा सिद्धाणथयं पदंति तो पच्छा । पुवभणिएण विहिणा किइकम्मं दिति गुरुणो उ॥४८८॥ सुकयं आणत्तिपिव लोए काऊण सुकयकिइकम्मा । वहुंतिओ थुईओ गुरुथुइगहणे कए तिणि ॥ ४८९ ॥
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