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चऊणगारवासं चरित्तिणो तस्स पालणाहेउं । जं जं कुणंति चिह्नं सुत्ता सा सा जिणाणुमया ॥ २०८ ॥ care चिज वा सो वत्ति मुणिअतत्ताणं । निअकारिओ उ मज्झं इमोत्ति दुक्खस्सुवायाणं ॥ २०९ ॥ तवसो अपिवासाई संतोऽवि न दुक्खरूवगा णेआ । जं ते खयस्स हेऊ निद्दिट्ठा कम्मवा हिस्स ॥ २९० ॥ वाहिस्स य खयऊ से विजंता कुणति धिइमेव । कडुगाईवि जणस्सा ईसिं दसिंतगाऽऽरोग्गं ॥ २११ ॥ इअ एवि अ मुणिणो कुणंति धिमेव सुद्धभावस्स । गुरुआणासंपाडणचरणाइसयं निदसिंता ॥ २१२ ॥ णय तेऽवि होंति पायं अविअप्पं धम्मसाहणमहस्सा । न य एगंतेणं चिअ ते कायचा जओ भणियं ॥ २१३ ॥ सो हु तो कायो जेण मणो मंगुलं न चिंतेइ । जेण न इंदिअहाणी जेण य जोगा ण हायंति ॥ २१४ ॥ देहेऽवि अपडबद्धो जो सो गहणं करेइ अन्नस्स । विहिआणुट्ठाणमिणंति कह तओ पावविसओत्तिः ॥ २१५ ॥ तत्थवि अ धम्मझाणं न य आसंसा तओ अ सुहमेव । सबमिअमणुद्वाणं सुहावहं होइ विन्नेअं ॥ २१६ ॥ चारित्तविहीणस्स अभिसंगपरस्स कलुसभावस्स । अण्णाणिणो अजा पुण सा पडिसिद्धा जिणवरेहिं ॥ २१७॥ भिक्खं अति आरंभसंगया अपरिसुद्धपरिणामा । दीणा संसारफलं पावाओ जुत्तमेअं तु ॥ २९८ ॥ Fi का सुहं निवाडिआ जेहिं दुक्खगहणंमि । मायाऍ केह पाणी तेसिं एआरिसं होइ ॥ २१९ ॥ चईऊण घरावासं तस्स फलं चेव मोहपरतंता । ण गिही ण य पद्मइआ संसारपवड्डगा भणिआ ॥ २२० ॥ एएणं चित्र सेसं जं भणिअं तंपि सङ्घमक्खित्तं । सुहझाणाइअभावा अगारवासंमि विष्णे ॥ २२९ ॥
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