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वक्खाणसमत्तीए जोगं काऊण काइआईणं । वंदति तओ जि, अण्णे पुवच्चिअ भणंति ॥१००९॥ ६|चोएइ जई जिट्ठो कहिंचि सुत्तत्थधारणाविकलो । वक्खाणलद्धिहीणो निरत्थयं वंदणं तम्मि ॥१०१०॥||
अह वयपरिआएहिं लहुओऽविह भासगो इहं जिट्रो । रायणिअवंदणे पुण तस्सऽविआसायणा भंते!॥१०११॥ जइऽवि वयमाइएहिं लहुओ सुत्तत्थधारणापडुओ।
वक्खाणलद्धिमं जो सो चिअइह घिप्पई जिट्रो ॥ १०१२ ॥ आसायणावि नेवं पडुच्च जिणवयणभासगं जम्हा। वंदणगं रायणिओ तेण गुणेणंपि सो चेव ॥१०१३॥
ण वयो एत्थ पमाणं ण य परिआओ उ निच्छयणएणं।
ववहारओ उजुज्जइ उभयणयमयंपुण पमाणं॥१०१४॥ निच्छयओ दुन्नेअं को भावे कम्मि वहई समणो ?।ववहारओ उ कीरइ जो पुवठिओ चरित्तम्मि॥१०१५॥ ववहारोऽवि हु बलवं जं छउमत्थंपि वंदई अरहा । जा होइ अणाभिन्नो जाणतो धम्मयं एयं ॥१०१६॥
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