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________________ Jain Education Inte अह तहावि ण पत्तो थेरो ताहे इमा विही ॥ २२॥ अणुण्णाए खुड्डुं उचट्ठावेंति, अह नेच्छइ थेरो ताहे पण्णविज्जइ दंडियदिट्टंतेण, आदिसद्दाओ अमञ्च्चाई, जहा एगो राया रज्जपरिब्भट्ठो सपुत्तो अण्णरायाणमोलग्गिडमाढत्तो, सो राया पुत्तस्स तुट्ठो, तं से पुत्तं रज्जे ठावितुमिच्छर, किं सो पिया णाणुजाणइ १, एवं तव जइ पुत्तो महबयरज्जं पावइ किं ण मण्णसि 2, एवंपि पण्णविओ जइनिच्छइ ताहे चउति (ठवति) पंचाहं, पुणोऽवि पण्णविज्जइ, अणिच्छे पुणोऽवि पंचाहं, पुणोवि पण्णविज्जइ, अणिच्छे पंचाहं ठंति, एवतिएण कालेण जइ पत्तो जुगवमुवद्वावणा, अओ परं थेरे अणिच्छेऽवि खुड्डो उवट्ठाविज्जइ, अहवा 'वत्थुसहावेण जाधीतं ति वत्थुस्स सहावो वत्थुसहावो-माणी, अहं पुत्तस्स ओमयरो कज्जामित्ति उण्णिक्खिमिज्जा, गुरुस्स खुड्डुस्स वा पओसं गच्छिज्जा, ताहे तिन्हवि पंचाहाणं परओऽवि संचिक्खाविज्जइ जाव अहीयंति गाथार्थः || २३ || पराभिप्रायमाह - इय जोऽपण्णवणिज्जो कहण्णु सामाइअं भवे तस्स? | असइ अ इमंमि नाया जुत्तोवट्टावणा णेवं ॥ ६२४ ॥ 'इय' एवं यः अप्रज्ञापनीयः, साधुवचनमपि न बहु मन्यते, कथं नु 'सामायिकं' सर्वत्र समभावलक्षणं भवेत् तस्य ?, नैवेत्यर्थः, असति चास्मिन् - सामायिके 'न्यायात्' शास्त्रानुसारेण युक्ता उपस्थापना न ' एवं ' पञ्चाहादित्यागेनेति गाथार्थः ॥ २४ ॥ किमित्यत आह जं बीअं चारितं एसा पढमस्सऽभावओ कह तं ? | असइ अ तस्सारोवणमण्णाणपगासगं नवरं ॥ ६२५ ॥ For Private & Personal Use Only ww.jainelibrary.org
SR No.600005
Book TitlePanchvastukgranth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size12 MB
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