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________________ श्रीपञ्चव. दुविहा-काले अकाले य, तत्थ जा काले सा सुत्तपोरिसिं अत्थपोरिसिं च काऊणं कालस्स पडिक्कमित्ता जायाए वेलाए संज्ञाकालः प्रतिदिन- |सा काले, अहवा जा जिमियस्स सा काले, सेसा अकाले, जइ णाम पढमपोरिसीए सण्णा भविजा तत्थ को विही?, क्रिया २ तत्थ उग्गाहेत्ता पाणयं गिण्हइ, अह ण उग्गाहेइ असामायारी, लोगो विजाणइ जहा एस बाहिरपाणयं गिण्हइ, ताहे ण| दिज चउत्थरसिअं, उग्गाहिएण य अण्णो गुणो, कोइ सट्टो पहाइओ, सद्धाए पुण्णाए साहू दिट्ठो, धुवो लाभोत्ति पडिलाहिज, सोऽवि लाभो भवइ, संकाऽवि ण भवइ, अण्णे जाणंति-जहा पाणगस्स हिंडंति, सो पुण केरिसं पाणगं गिण्हइत्ति ?, अच्छमपुफियम्-अगंध, जाहे ण होज चउत्थरसिताहे तिदंडोदयं गिण्हइ, जाए दिसाए सण्णाभूमी ताए दिसाए न घेत्तवं, जइ गिण्हइ असामायारी, उड्डाहो हुजा, तम्हा अण्णाए दिसाए पाणयं घेत्तवं, तंपि जइ अणाउच्छाए विचति असामायारी, तो तेणं परिमियं पाणयं गहियं, ताहे अण्णोऽवि भणेज-अहंपि वच्चामि, जइ परिमिए एक्कस्स दो वञ्चंति उड्डाहो, अह ण अण्णं मग्गइ ताहे भावासण्णा भवति, ताहे दोसा, तम्हा आपुच्छित्ता गंतवं पाणयस्स, आमंतेयवा य-अजो ! कस्स भे कजं सण्णापाणएण ?, ताहे जत्तिया भणंति तेसिं परिमाणेण गिण्हइ, जई दो वच्चंता ता तिण्ह परिमाणेण गिण्हइ, अह बहवे ताहे अपरिमियं गिहिज्जा, चित्तूण आगओ बाहिं पडिलेहेत्ता पमज्जित्ता दंडयं ठावित्ता इरियाए पडिक्कमित्ता आलोएत्ता दाएत्ता पुणोऽवि आपुच्छंति-वच्चामि बाहिं, आणयइ आमंतेइ, जइ ॥६५॥ ४ कोइ वच्चइ ताहे तप्पमाणं पाणयं गिण्हइ, जाहे नत्थि अप्पणा एगो ताहे बिउणं गिण्हइ, ताहे एकलगोऽवि वच्चइ, तं81 ओग्गाहिअमण्णस्स दाऊण हत्थे दंडयं पमज्जित्ता ताहे गिण्हइ, जइ अणापुच्छाए वच्चइ असामायारी, आवस्सियं न XAS CARACTERUG 2 Jain Education inte For Private & Personal Use Only i www.jainelibrary.org
SR No.600005
Book TitlePanchvastukgranth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size12 MB
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