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________________ आचारदिनकरः ॥१५८॥ न्यास करवानो होय ते वास्तुभूमिना ईशान अथवा नैऋत कोणमां अक चोरस वेदो बनाववी, वास्तुमाने जेवडी शिलाओ होय तेने अनुसार अभिषेकवेदो बनाववी, शिलाओ ४-५-८-९ पैकी केटली छे. अने तेओर्नु दैर्ध्य-विस्तार केटलो छे, बधो विचार करीने शिलाओ सारी रीते रही शके तेवा प्रमाणमां वेदी बनावीने ते उपर शिलाओ-उपशिलाओ अने कलशोनो अभिषेक करवो. अभिषेक सोनाना, रूपाना, प्रांवाना अथवा माटीना ५ कलशो वडे करवो, ओछामां ओछा १ कलशथी पण अभिषेक करी शकाय के. गंगा, जमना, नर्मदा, सरस्वती, आदि महानदियो तथा शुभ तीर्थोनां शुद्ध जलो यथालाभ प्राप्त करी अभिषेकना जलमां मेलववां, जलमां सौंषधि चूर्ण, सुवर्ण रज, सुगंधि द्रब्यो अने सुगंधि पुष्पो नाखीने ते जलना भरेला म्होटा घडा उपर वस्त्राछादन करी उपर हाथ देइ बहच्छान्तिनो अखंड पाठ बोलवो अने ते पछी ते जल वडे अभिषेकना कलशो भरवा. शिलाओ, उपशिलाओ अने निधिकलशो वेदी उपर प्रथम यथास्थान गोठवी देवा, वेदीना अभावे लाकडानो म्होटो पाट गोठवीने ते उपर त्रांबा पीतलनी कथरोटो गोठवी तेमां शिलाओ राखीने पण अभिषेकन कार्य करवू. वधी तैयारी थइ गया पछी स्नातविलिप्त स्थपति अथवा गृहपति हाथमां जलकलश लेइने"ॐ हिरण्यगर्भाः पाविन्यः, शुचयो दुरितच्छिदः । पुनन्तु शान्ताः श्रीमत्य, आपो युष्मान् मधुच्युतः॥१॥" आ मंत्रश्लोक बोली नन्दा शिलानो अभिषेक करे, अज प्रकारे प्रत्येक वार कलश भरी उपरनो मंत्र fonal For Private & Personal Use Only | ॥१५८॥ Jain Education Lamiww.jainelibrary.org
SR No.600003
Book TitleAchar Dinkar
Original Sutra AuthorVardhmansuri
Author
PublisherJaswantlal Girdharlal & Shah Shantilal Tribhovandas Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages566
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size11 MB
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