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________________ परिच्छेद ४. शिलान्यास विधि : वास्तूनां पादरूपिण्यः, शिलान्यस्ता विधानतः । चिरायुष्कत्वकारिण्यो, वेश्मनां भर्तुरप्यथ ॥१०॥ भा० टी०-जिलाओ वास्तु (घर, मंदिर आदि)ना पाया रूप गणाय छे, तेथी शिलाओ विधि पूर्वक स्थापन करवाथी घर तथा घरस्वामीन दीर्घायुष्य करनारी थाय छे. सामग्री-शिला ४-५ अथवा ९, उपशिला ४-५ अथवा ८, निधिकलश ४-५ वा ९, पंचरत्न पोटली ४-५ वा ९, वस्त्रो ४-५ वा ९ हाथहाथनां, तेमां (४ शिलापक्षे-रातुं, श्याम, नीलं अने श्वेत, ५ शिलापक्षेरातुं, श्याम, नीलं अने २ श्वेत अने ९ शिलापक्षे-रातुं, श्याम, नील, कालं, आस्मानी, पीलं अने ३ श्वेत), गेवासूत्र कोयो १, सातधानना बधिबाकला थाली १, शुद्ध जले भरेला घडा २, अभिषेक योग्य कलशिया ४, कांसानी थाली १, वेलण १, म्होटो पाट १ (वेदीना बदलामां) सवौषधि चूर्ण पडिकुं १, शिलालूंछणां वस्त्र ३, रुई (दीवेट माटे), पुंभो १, घसेला केसरनी वाटकी २, दीवो १, धूपधाणुं १, गंगाजल, तीर्थजल, अक्षत, सोना-रूपा वा तांबानो कूर्म १, धृत (दीवा तथा निधिकलशने योग्य), दूध, दहि, साकर, दशांग धूप पडिकुं १, अगरबत्ती पडिकुं १, पुष्पो सुगंधि पूजायोग्य, वासक्षेप पडिकुं १, गृहपति १, शिल्पी १, स्नात्रकार १ अने रत्न धातु आदिनी ९ पोटलीओ. शिलाभिषेक-शिलाओनो प्रथम अभिषेक करी पछी छे यथास्थान प्रतिष्ठित करवी जोइये, ज्यां शिला -960 -6 -964 C Jain Education a tional For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600003
Book TitleAchar Dinkar
Original Sutra AuthorVardhmansuri
Author
PublisherJaswantlal Girdharlal & Shah Shantilal Tribhovandas Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages566
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size11 MB
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