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आचारदिनकरः
॥१५७॥
करेमि कासगं, अन्नत्थ० इत्यादि कहीने १ लोगस्स सागरवरगंभिरा सुधीनो काउस्सग्ग करो पारीने नमो कही
" यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । जैनं कूर्म सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥" आ स्तुति कहेवी. शेष विधि प्रथम प्रमाणे करवी. चैत्यवंदन विधि कर्या बाद अक्षतांजलि भरीने"जह सिद्धाण पट्ठा, तिलोकचूडामणिम्मि सिद्धिए । आचंद्रसूरियं तह, होउ इमा सुपट्ठन्ति ॥१॥ जह सग्गस्स पट्टा, समत्थलोयस्स मज्झयारम्मि । आनंद सूरियं तह, होउ इमा सुपट्ठत्ति ॥२॥ जह मेरुस्स पट्ठा, दीवसमुद्दाण मज्झयारम्मि । आनंदसूरियं तह, होउ इमा मुपहन्ति ॥ ३ ॥ जह जंबुस्स पट्ठा, जंबुद्दीवस्स मज्झयारम्मि । आचंद्रसूरियं तह. होउ इमा सुपरट्ठति ॥४॥ जह लवणस्स पइट्ठा, समत्थउदहीण मज्झयारम्मि । आचंद्रसूरियं तह, होउ इमा सुपइट्ठत्ति ॥५॥ आ मंगल गाथाओ भणी अक्षताञ्जलि कूर्म उपर नाखवी, स्नात्रकारोए अक्षतांजलि उपरान्त पुष्पांजलि पण नांखवी, ते पछी कूर्म उपर वस्त्राछादन करी च्यारे बाजुमां इंटो चणीने उपर शिला अथवा पत्थरनुं पाटियुं ढांकी देवराव के जेथी कूर्म उपर शिला आदिनुं दबाण न आवे.
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